Sunday, July 19, 2009

मेरी कोणार्क यात्रा

अब तक मैं अपनी उडीसा यात्रा की तस्वीरें दो किस्तों में आपकी नज़र कर चुका हूँ और अब बात कोणार्क की।

कोणार्क का मंदिर जब तक आपको नज़र न आ जाए आपको लग सकता है की आप किसी ग़लत रस्ते आ गए हैं चूंकि इतनी मशहूर वर्ल्ड हेरिटेज साईट के आस-पास कोई ख़ास बसावट नहीं है जैसी अक्सर मंदिरों के पास होती है . शायद इसलिए की यहाँ पूजा-पाठ नहीं होता है बस मंदिर देख कर लोग निकल लेते हैं . मैं कह चुका हूँ की हम जब वहां गए तो ऑफ सीज़न चल रहा था सो दूर- दूर तक पर्यटकों का अता-पता न था और इसीलिए पूरा माहौल अद्भुत ,आश्चर्यलोक सरीखा लग रहा था . जब भी 'भारत में पर्यटन' पर कोई लेख विदेशी पत्रिका में छपता है तो सूर्य मंदिर के एक विशाल पहिये की आकृति ज़ुरूर छाप दी जाती है .

बहरहाल, मेरे मन में इसकी जो छवि थी उस से ये काफी विशाल था जबकि खँडहर बता रहे थे की एक ज़माने में ये उस से भी बहुत विशाल क्षेत्र में फैला होगा . मुख्य मंदिर की बात करें तो बाहरी दीवारों पर उकेरी गयी मूर्तियों के तीन स्तर थे . सबसे नीचे विचित्र आकृतियों वाले पशु-पक्षी थे , मध्य में सम्भोग रत मानवाकृतियाँ थीं और सबसे ऊपर वाद्य यंत्रों के साथ भक्ति भाव में झूमते नर-नारी थे . ये तीन स्तर क्रमशः बचपन, यौवन और प्रौढावस्था का अंकन माने जाते हैं . हालाँकि इस यात्रा में मेरी हमसफ़र रहीं प्रोफ़ेसर शिनावात्रा को इस बारे में पहले से जानकारी थी मगर मेरे लिए ये सब काफी अनोखा था चूंकि मेरी सीमित जानकारी में सम्भोग आकृतियाँ सिर्फ खजुराहो में थीं .


पुरातत्व विभाग के एक कर्मचारी ने हमें बताया की इन मूर्तियों के बारे में एक थ्योरी ये है की वर्षा का देवता इन्द्र इन दृश्यों को देख कर प्रसन्न होगा और समयानुकूल वर्षा होगी , दूसरी थ्योरी ये है की कलिंग युद्ध में हुए भीषण रक्त-पात के बाद आम-जन में वैराग्य व्याप गया और जनसँख्या में हो रही गिरावट से परेशान होकर तत्कालीन राजाओं ने जनता को विवाह संबंधों के लिए प्रेरित करने के मकसद से इन्हें बनवाया , तीसरा मत ये है की मूर्तिकारों को १२ वर्ष तक पूरी रचनात्मक छूट दी गयी मगर परिवार से दूर रखा गया और ये उनकी दमित आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है , एक मत इन चित्रणों को जीवन की पूर्णता का गान मानता है . बहरहाल , भारत के गौरवमयी अतीत को जान पाना इस मंदिर को देखे बिना असंभव है ।

प्रोफ़ेसर शिनावत्रा काफी समय तक अपने अकादमिक मकसद से वहां विडियो शूट करती रहीं और इस बीच मुझे कर्मचारियों से बात करने का काफी समय मिल गया . उनका कहना था की लोग यहाँ बाल बच्चों समेत आ तो जाते हैं मगर फिर किसी तरेह जल्दी से निकलने की कोशिश करते हैं . मुझे लगा ये स्वाभाविक भी है .



शाम को हम फिर जगन्नाथ पुरी लौट आये जिसका ज़िक्र अगली बार करूंगा .

13 comments:

जितेन्द़ भगत said...

आपने कोणार्क की ऐति‍हासि‍क जानकारी दी, जो वाकई रूचि‍कर है। ये जानकर हैरान हुआ कि‍ इस ऐति‍हासि‍क धरोहर के आसपास रौनक नहीं है, पर्यटक नहीं हैं।

मुनीश ( munish ) said...

I t was off season Jeetu . The same month last year. Otherwise it is a huge hit among tourists . Road is also very good .

अजित वडनेरकर said...

मिथुन मूर्तियां कई स्थानों पर हैं मुनीश भाई। उड़ीसा यात्रा बढ़िया चल रही है। कोणार्क की मिथुन मूर्तियों से जुड़ी धारणाएं जानना दिलचस्प रहा।

जै कोणार्क...जय मुनीश...जय प्रो.शिनवात्रा...

sanjay vyas said...

मुझे याद पड़ रहा है कि ये तस्वीरें मैं मयखाना पर पहले देख चुका हूँ.तब बधाई नहीं दी थे आज प्रचुरता में देना चाहता हूँ.
कलिंग युद्ध वाली थियरी जमती नहीं, एक लंबा अन्तराल दोनों के घटने के बीच रहा है तब तक बंगाल की खाड़ी में बहुत पानी बह चुका होगा.

Ashok Pande said...

मुनीश भाई, हमारे कुमाऊं में रानीखेत-अल्मोड़ा रूट पर कोसी नामक स्थान पर भी तकरीबन ऐसे ही शिल्प का इतना ही पुराना सूर्य मन्दिर है. हालांकि वहां इन्द्रदेव को खुश करने को उस तरह की मूर्तियां उकेरी नहीं गई हैं. पुरातत्व विभाग ने इस मन्दिर को भी सरकारी हैरिटेज बना लिया है. एक पुराने पेड़ के गिर जाने के कारण इस शानदार इमारत का एक हिस्सा ध्वस्त होने के बावजूद रिपेयर वर्क में भीषण कोताही बरती जा रही है. अलबत्ता बकरियों की लेंड से भरे अहाते में आसपास के गांवों के चरसप्रेमियों ने इधर इस कैम्पस को अपनी पनाहगाह बनाया हुआ है.

तस्वीरों को खोज रहा हूं. जल्दी लगाता हूं उन्हें भी स्कैन कर के यहां.

उम्दा आलेख.

मुनीश ( munish ) said...

@अजित - अजित भाई शुक्रिया आपकी हौसला अफ़्ज़ाई का !
@Sanjay vyas - इसीलिए तो ये तस्वीरें मुझे यहाँ चेप्नी पड़ीं ! मुझे शराबी जान कर वहां सीरिअसली नहीं लेते लोग :)
जी ये प्रचलित धारणाओं में से एक भर है , निर्णय प्रोफेसरान करें .
@अशोक - प्रा जी वो जगह है कटारमल . तस्वीरें लगा ही दें चूंकि सुना भर है ,देखा नहीं . ये जान कर हैरानी होती है की कोणार्क वाली ही अक्षांश रेखा पर ऐसे सूर्य मंदिर गुजरात के मधेरा ,मिस्त्र के गीज़ा पठार और दक्षिणी अमरीका तक फैले हैं और एक धर्म से इनका ताल्लुक नहीं है .

July 19, 2009 4:26 PM

नीरज गोस्वामी said...

बहुत रोचक एवम ज्ञानवर्धक लगी आपकी कोणार्क यात्रा...चित्र भी नयनाभिराम हैं...मिथुन मूर्तियाँ राजस्थान के फालना के पास बने विश्व प्रसिद्द जैन मंदिर रणकपुर के प्रांगन में बने सूर्य मंदिर में भी हैं.
नीरज

yayawar said...

akskok ji,
in fact i am looking forward to contribute in your blog but don't know how to ? kindly let me know the way i can.
The spread about Konark temple is interesting. I had visited the temple in Jan,1999.
There is a play by a well known British dramatist Peter Shaffer titled " The Royal Hunt of the Sun"
I would look forward for your reply
regarding my quarry.

Thanking you

akhilesh dixit

मुनीश ( munish ) said...

@Neeraj: Thanx Neeraj bhai for this information and ur spirit of sharing !

मुनीश ( munish ) said...

@ all: Thanx a lot dear friends for the spirit of sharing ! Hope to c u all here again!

Anil Pusadkar said...

मुनीश भाई छत्तीसगढ के कबीरधाम ज़िले मे स्थित भोरमदेव मंदिर को छतीसगढ का खजुराहो कहा जाता है।अच्छी जानकारी दी कोणार्क के बारे मे।

Vineeta Yashsavi said...

Achhi jankari...

मुनीश ( munish ) said...

@Anil & Vineeta: Dear friends i know i have not told u anything which u did not know already . It is ur greatness that u r appreciating me and like all ordinary mortals i m happy to hear it from u.