Saturday, July 18, 2009

रात में श्मशान और बाक़ी तस्वीरें

हिमालय के तो कई रंग देखे थे मगर बंगाल की खाड़ी में हरहराता हिंद महासागर पहली बार देख रहा था . अलबत्ता, अरब सागर पहले भी देखा मगर ये तो महा- समुद्र था और उस पर जगन्नाथ पुरी का वो साहिल जो दुनिया के दस सबसे आला 'सी-बीचेज़' में शुमार होता है !! सो देर रात तक मैं वहीं टहलता रहा । समंदर के किनारे खासी रौनक थी , एक छोटा सा बाज़ार भी करीब दस बजे तक सजा रहा । ये पुरी में ऑफ़-सीज़न का वक़्त है मगर फ़िर भी सैलानी तो वहां रहते ही हैं चाहे हज़ार से कम ही सही । रेत में सजे बाज़ार में घूमते -घामते कुछ दूर निकल गया जहाँ से उठती आग की लपटें बड़ी ड्रामाई लगती थीं , ऐसे की जैसे वो आँच का कोई स्पेशल -इफेक्ट हो..... जैसे स्टेज के ड्रामों में दिया जाता है । पास पहुँचा तो पता लगा पुरी में श्मशान आधी रात तक जागता है ताकि हमेशा के लिए सो चुके जल्द उस पार हों ....उस पार जहाँ जाने क्या है ये कोई नहीं जानता ! बहरहाल ,जी कुछ बुझ सा गया मगर भीतर छिपा कमीना फोटोग्राफर वहां भी बाज़ न आया और तस्वीरें लेने को मजबूर करता रहा । इसके बाद , सुबह जब दोबारा वहां पहुँचा तो उसी समंदर के किनारे जहाँ रात में जलती चिता थी , बाज़ार था वहां अठखेलियाँ करते एक बच्चे को देखा और अगर वो रात कैमरे में क़ैद न होती तो मुझे भी यही लगता की कोई सपना देखा । सुनी भी ये देख कर हैरान थी , .... प्रोफ़ेसर सुश्री सुनी शिनावात्रा जो मिथुन -मूर्तियों के बारे में जानने अपने मुल्क थाई लैंड से हिन्दोस्तान आई हैं और जिनकी इल्तजा है के मैं उनका दुभाषिया बन जाऊं । उन्हें अब कोणार्क जाना है चूंकि वो मूर्तियाँ तो वहीं मिलेंगी और मेरे पास भी इनकार की कोई ख़ास वजह नहीं है सो अढाई सो रुपल्ली पर- डे के किराये पे एक फटफटी ले हम निकल जाते हैं कोणार्क जिसके बारे में अगली मर्तबा ..........



























9 comments:

Anil Pusadkar said...

जीना इसीका नाम है।

अजित वडनेरकर said...

बच्चे की कलाबाजी वाले चित्र बहुत दार्शनिक अर्थ लिए हुए है। शन्य से प्रकट हुई कलाबाजी ... शून्य की ओर लौटती हुई..
बहुत खूब...

फिक्रे-दुनिया में सर खपाता हूं
मैं कहां और ये बवाल कहा?

वो शबो-रोज़ो-माहो-साल कहां...

Renu goel said...

बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ रोज़ तमाशा मेरे आगे

मुनीश ( munish ) said...

सिर्फ तीन कमेंट्स यार ! एक निहायत सुनियोजित , फाशीवादी सोच के तहत ये ज़ालिम ,हलकट ज़माना मुझ जैसे निरीह, नवागंतुक ,नवजात कबाडी को इग्नोर किये जा रहा है ! .

मुनीश ( munish ) said...

@Anil,Ajit,Pukraj : Thanks a lot for ur genuine concern for this work of art.

प्रेमलता पांडे said...

Art of words!
death is only reality.

Harish Joshi said...

der se aaya aapke blog par , lekin aaya to sahi ...achchi jaankaari aur photo ka shukriya ...sirf teen coment nahi sir ..hame bhi shamil kar apne chaheton me ...

Vineeta Yashsavi said...

WoW !!! what a pictures...

मुनीश ( munish ) said...

WoW! हाँ यारो अब कुछ -कुछ ठीक लग रहा है ! WoW !