Monday, July 27, 2009

चलिये रायते पर रायता फ़ैलाया जाए


विभिन्न प्रकार के साधनों की सहायता से टुन्न होने का सत्कर्म करने वालों को रायते का महात्म्य भली भांति मालूम है।

'शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ' लिखने वाले मरहूम शायर मजाज़ साहब पैरोडियां बनाने में एक्सपर्ट की हैसियत रखते थे। एक दावत में उन्होंने रायते पर कई शेर कहे थे। अलग अलग शायरों की स्टाइल में कहे गए थे ये शेर। फैज़ साहब की ज़मीन पर शेर देखें:

"तेरी अन्गुश्त-ऐ-हिनाई में अगर रायता आए
अनगिनत जायके यल्गार करें मिस्ल-ऐ-रकीब"


(यानी अगर तेरी मेंहदी लगी उँगलियों पर रायता लग जाए तो तमाम स्वाद शत्रुओं की तरह आपस में आक्रमण करने लगें।)

ख़ुद अपने एक शेर को मजाज़ साहब ने इस तरह रायतामय बनाया:

"बिन्नत-ऐ-शब-ऐ-देग-ऐ-जुनून रायता की जाई हो
मेरी मगमूम जवानी की तवानाई हो"


फिराक साब की ज़मीन पर फकत एक मिसरा है। साब लोग उसे पूरा कर सकते हैं:

"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."

6 comments:

siddheshwar singh said...

पुराने चूल्हे की है आँच जरा - सी मद्धम.
टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम .

देखते जाओ मेरे दोस्त , ऐ मेरे हमदम.
कबाड़खाने के इस रायते में मिर्च है कम.

Neeraj Rohilla said...

टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम
टल्ली दिले बेकरार की यादों में चम चम ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

मजाज़ का वह चुटकुला भी ज़हन पर तैर गया- जब किसी शायर ने उनके शे’र की तारीफ़ में कहा- वाह क्या शेर है, इस पर मेरा दीवान कुर्बान.. तो मजाज़ ने कहा"यह ज़्यादती न करना, मुझे यह सौदा मंज़ूर नहीं।":)

अनूप शुक्ल said...

मजेदार! चंद्रमौलेश्वर जी ने मजाज साहब का चुटकुला सुनाया वो भी गजब का है!

Rangnath Singh said...

maja aa gya ....

मुनीश ( munish ) said...

"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."
मिर्च्री ज़ियादे चीनी कम ..चीनी कम
आब-ऐ-ज़म ज़म, भोले बम ..बम..बम .....