Thursday, July 16, 2009

भुवनेश्वर का एक पेशाबघर और दीगर अहवाल

किसी इंसान की फितरत उसके जूतों से और किसी इमारत के बाशिंदों की असल औक़ात टॉयलेट के रख-रखाव से पता चलती है ,ऐसा मेरे दोस्त मेजर किशनपाल के मरहूम ददा -जानी का फरमाना था! मैं उनके इस क़िस्म के ओब्ज़ेर्वेशन्स का बड़ा कायल रहा , सो भुवनेश्वर के रेलवे प्लेटफार्म नम्बर एक पे मौजूद इस टॉयलेट की तस्वीर लेना मैंने ज़ुरूरी समझा! पाँच सितारा होटलों , दिल्ली में वाक़े NGOs के आलिशान दफ्तरों और दूतावासों को छोड़ दें तो मुल्क में ये शोवा आज भी फनकारों की नज़रे-इनायत से महरूम है । बहरहाल, इस पेशाबघर में फूल- दार टाइल्स के अलावा फूलों के गुच्छे भी किसी अनाम फनकार ने इस खूबी से सजाये थे के क्या कहिये और ये सब महज़ एक रुपये की रूटीन प्राइस पर ! इधर सुनते हैं की हाल ही में किसी ने कबाड़खाने को पाखाना कह डाला था ,दरअस्ल कब्ज़ ज़ियादे हो जाय तौ इंसान बागे-बहिश्त में भी यही देखता है ! सो जिन्हें हाजत रफ़ा करनी है उन्हें ऐसे पेशाबखाने औ' पाखाने नसीब हों ऐसी दुआ ये कबाड़खाना करता है. बाकी तस्वीरें पुरी के सी बीच की हैं ,कहते हैं तमाम समंदर अगस्त्य ऋषि का पेशाब है ,आपकी क्या राय है दोस्तो ?






महामंत्री - तस्लीम said...

दोनों ही जगहें लाजवाब हैं।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

July 16, 2009 10:35 AM

Blogger अंशुमाली रस्तोगी said...

उम्दा।

July 16, 2009 11:08 AM

Blogger अंशुमाली रस्तोगी said...

उम्दा।

July 16, 2009 11:08 AM

Blogger शिरीष कुमार मौर्य said...

कहते हैं तमाम समंदर अगस्त्य ऋषि का पेशाब है - क्या बात है मुनीश जी. जी खुश का दिया आपकी तस्वीरों के क्रम ने ! और हाँ, आपको कबाड़ी की भूमिका में देख कर भी अच्छा लगा.

July 16, 2009 11:13 AM

Blogger शिरीष कुमार मौर्य said...

एक बात और - आपको कविता-फविता से कोई लेना देना नहीं पर ये तस्वीरें भी दरअसल एक कविता ही हैं ! मानेंगे मेरी बात?

July 16, 2009 11:21 AM

Blogger Nanak said...

चलो बात निकली है तो थोड़ी दूर तक जाने दो. अगर तमाम समंदर अगस्त्य ऋषि का पेशाब है तो हम मनु या आदम के ....? खैर, तस्वीरे लाजवाब हैं और उनसे अपनी बात जोड़ने का फ़न कोई आपसे सीखे. बीती काली रात के बाद आपकी पोस्ट उगते सूरज की तरह है.

July 16, 2009 11:35 AM


8 comments:

मुनीश ( munish ) said...

Thnx for comments dear friends !

Ashok Pande said...

Hope sanity prevails soon Munish Bhai!

अजित वडनेरकर said...

भेतरीन तस्वीरें...पांचवीं तस्वीर वाले सज्जन का ग्यारहवीं तस्वीर में अचानक कायाकल्प समझ में नहीं आया..

कबाड़खाना जिंदाबाद, मुनीश भाई की जैकार

मुनीश ( munish ) said...

भूसी करण से भूमंडलीकरण हो गया उसका... बस और कुछ नहीं अजित भाई !

Syed Ali Hamid said...

I'm sure everyone is feeling "relieved" on seeing these photographs, especially the toilet one, after that rather undesirable mud-slinging match. I'm suddenly reminded of the famous poet Chirkeen and I'm writing a couplet of his below(I hope you are familiar with his diwaan):

नाज़ से बोला दम-ए-रुक्सत न आना फिर कभी
वर्ना ऐ चिरकीं ये घर बैतुलखला हो जाएगा !

मुनीश ( munish ) said...

प्रिय ज़ाकिर, अंशु ,शिरीष ,नानक ,अशोक और अजित ,
इस कोलाहलमय , अहर्निश चौत्य कर्मों में लाहा-लेट दुनिया से कुछ पल निकाल कर तुमने मुझसे बात की . मिहिर्बानी,शुक्रिया बड़ी इनायत की.

Dear sir,
Thnx for sharing this rather hilarious couplet here. Yes, i've heard a lot about the book ,but could never got the opportunity to lay my hands on it.
Munish

प्रीतीश बारहठ said...

मुनीश जी,

ये आकर्षक मापदण्ड आभिजात्य वर्गीय हैं या मध्यम वर्गीय। एक नामचीन मॉडल ने एक इन्टरव्यू में कहा था कि वह उस शख्स को लाइफ पार्टनर बनायेगी जो लम्बा होगा अपने जूतों की रोज पालिश करता होगा। अपनी लम्बाई बढ़ाना तो बस में नहीं था लेकिन उस दिन से हम रोज अपने जूतों की पालिश करने लगे। पता नहीं वह मा़डल अब कहाँ है और उसके कितने बच्चे हैं ! हमको तो जो माडल मिली उसको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जूते पालिश किये हुए हैं या नहीं, वह तो बस टायलेट की सफाई से समझौता नहीं कर सकती।

मुनीश ( munish ) said...

Good to know Pritish !