Saturday, July 18, 2009

हमारे सामने जो पड़ा है मलबा नहीं, ढहे हुए हमारे शिखर हैं.

श्री राम कुमार तिवारी की कविताओं को आपने काफ़ी सराहा था. उनके काव्य संग्रह 'कोई मेरी फ़ोटो ले रहा है' से आज पढ़िये उनकी कुछ और कविताएं.




कितनी अकेली है

लगा गया
सिर के बल डुबकी
किनारे खड़ा पहाड़

यह झील कितनी गहरी है

उड़ रही चिड़िया
आकाश है अंदर

जिसने भी झांका
अपने को देखा

है तो बात
पर कितनी अकेली है

इतना नशा तो चाहिये

शाम के धुंधलके में
पुल पर खड़ा देखता हूं
उस पार से दारू पीकर लौटते
कुली, कबाड़ी, ड्राइवर खलासियों को

नशे में धुत्त
न जाने क्या-क्या बकते हैं
किसी को नहीं छोड़ते
वो साला!सूदख़ोर
मेरी घरवाली की हंसुली पचा गया
खाने दो सालों को
कुत्ते की मौत मरेगा

वह दरोगा
नकली मूंछों वाला
जब देखो तब घर में घुस आता है
लम्बी पूंछ वाला
कहता है दारू बनाते हो
सौ का महीना दो

वह बांधकर ओसियर
साला! बीस में ठप्पा लगवा कर दस देता है

उसकी बातें सुनकर
मुझे डर होता है
अगर किसी ने सुन लिया
तो क्या होगा इनका
खाल खींच ली जाएगी

लेकिन तभी डर में से
आवाज़ आई, नहीं
इतना नशा तो हर आदमी में
हर समय होनी चाहिये.

हमारे शिखर

स्खलित हुआ पहाड़
अवरुद्ध हो गया रास्ता
हमारे सामने जो पड़ा है
मलबा नहीं
ढहे हुए हमारे शिखर हैं.

जल्दी-जल्दी रास्ता

रास्ते में पेड़ मिला
देखते ही पहचान गया

पुरखों की बात करते समय
उसकी आंखें चमक रही थीं

मेरे पुरखों के बारे में
बहुत कुछ बताना चाहता था
मुझे पहुंचने की जल्दी थी

आजकल जल्दी पहुंचने के लिए
जल्दी-जल्दी रास्ता बदल रहा हूं

(इसी संग्रह के लोकार्पण के अवसर पर खींची गई रामकुमार जी की तस्वीर अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़ से श्री महेश वर्मा द्वारा भेजी गई है. उनका आभार)

2 comments:

mahesh said...

अशोक जी,
रामकुमार जी बेहद संकोची कलाकार हैं. यह संग्रह पांच साल पहले ही आ जाना था.वाणी प्रकाशन में तीन साल तक लटका रहा.रामकुमार जी ने काफ़ी कहानियां लिखी हैं... बिल्कुल अलग जगह से संसार को देखते हुए. उनका कहानी संग्रह भी आना चाहिये.
रामकुमार जी के जैसे लेखकों के बहाने ही सही प्रकाशन तन्त्र, किताबों की कीमतों, सप्लाई माफ़िया आदि के बीच लेखक की जगह पर बात होनी चाहिये.

मुनीश ( munish ) said...

Itna nasha to....I agree with your concern sir. Thanx for these poems.