Sunday, August 16, 2009

प्राग के भूतों के कुछ क़िस्से


भूत-प्रेत और उनके अस्तित्व और उनके बारे में प्रचलित बेहद रचनात्मक किस्से-कहानियां बचपन से ही मुझे बहुत आकर्षित करते रहे हैं. कथावाचन की परम्परा में इन महानुभावों का बड़ा ज़रूरी और महत्वपूर स्थान है. मेरे पैतृक गांव, अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत और रामनगर वगैरह जगहों में इनके कई किस्से बड़े चाव से सुने-सुनाए जाते रहे हैं. इन पर एक लम्बी पोस्ट जल्दी.

लेकिन जितना विषद अध्ययन और दिलचस्प शोध इस विचित्र संसार पर यूरोप और दक्षिण अमरीका में किया जा चुका है, वह मेरे भीतर काफ़ी ईर्ष्या (और सम्मान) पैदा करता है.

फ़िलहाल मैं आपको अपने प्रिय शहर प्राग के कुछ भूतों के बारे में बताने जा रहा हूं.

काफ़ी लम्बे समय से प्राग को यूरोप का सबसे भुतहा नगर भी कहा जाता है. यह अलग बात है कि अब ऐसा कहना उचित नहीं जान पड़ता. ऐसा नहीं कि प्राग के भूत किसी और जगह जा बसे हों पर आधुनिक सभ्यता उनके अस्तित्व को नकार के साथ देखने की हिमायती है सो प्राग के इतिहास के ज़रूरी हिस्सों के तौर पर जुआरियों, पागल नाइयों और मार डाले गए संगीतकारों वगैरह के प्रेत अब प्राग की टूरिस्ट गाइड्स के हिस्से बन कर रह गए हैं.

हर रात पौने आठ बजे आप प्राग के पुराने चौक पर मौजूद क्लॉक टावर के सामने पहुंच कर बाकायदा टिकट खरीदकर भुतहे मकानों के गाइडेड टूअर पर जा सकते हैं. करीब डेढ़ घन्टे चलने वाले इस टूअर में आप को आपका गाइड तमाम अभिशप्त इमारतों के बारे में बताएगा.

अपनी प्रेमिका पर बेवफ़ाई का सन्देह कर उसकी हत्या के बाद प्रायश्चित कर रहे सोलहवीं सदी के एक युवा तुर्क का प्रेत प्राग की पुरानी बसासत उन्गेल्त - ७ के टाइन कोर्ट में हर पूर्णिमा के दिन रोया करता है.

तीस साला युद्ध में मारे गए एक स्वीडन निवासी का भूत माला स्त्राना की गलियों में अपना कलम किया हुआ सिर टाट के एक बोरे में डाले घूमता रहता है.

पिछली बार माला स्त्राना में इसी घर के अहाते में देखा गया था स्वीड भूत


पुराने शहर की गलियों में कारोलियम के बाहर उस मिथकीय कंकाल के खड़खड़ाने की आवाज़ें आती हैं. इस लम्बे तड़ंगे नौजवान की देह को एक जन्तुविज्ञानी अपने संग्रह में रखना चाहता था. नौजवान को यकीन था कि वह अपने से चालीस साल बड़े जन्तुविज्ञानी प्रोफ़ेसर से ज़्यादा समय तक जीवित रहेगा, सो उसने अपनी सुदूर लगने वाली मौत के बाद अपना कंकाल फ़क़त तीस क्रोनर में बेच देना मंज़ूर कर लिया. उस रात उसने इन पैसों से ख़ूब शराब पी और उसके बाद हुए एक फ़साद में मारा गया. कहते हैं आज भी रातों को शराब में धुत्त घूमते लोगों को इस नौजवान का प्रेत पैसे मांगता मिल जाया करता है ताकि वह अपने कंकाल को वापस खरीद सके.

एक किस्सा घड़ीसाज़ के प्रेत का है तो एक काउन्टेस का जो अकाल के वक्त डबलरोटी के बने जूते पहन कर नृत्य किया करती थी. कीमियागरी, जादू, छल, छद्म जैसी शाश्वत थीम्स में लिपटी कहानियों में यहूदियों, कैथोलिकों, जादूगरनियों, सिरकटे पादरियों जैसे प्रेतों की अजब कहानियां प्राग के गली-कूचों में फैली हुई हैं.

टूअर के उपरान्त आप चाहें तो मिलोस्लाव स्वानद्रिलिक की लिखी 'प्राग घोस्ट्स' नामक किताब ख़रीद सकते हैं. मैंने आज तक कोई भूत नहीं देखा है अलबत्ता इस किताब को पढ़ना अब भी अच्छा लगता है.

हां, इस यात्रा पर निकलने से पहले यदि आपका गाइड आप को एब्सिन्थ नामक शराब के दो पैग हलक से नीचे उतारने का प्रस्ताव दे तो संकोच न कीजियेगा. आसमानी रंग की इस शराब के भीतर बला की आसमानी ताकतों से निबटने की ताकत होती है. क्या पता किसी गली के किसी कोने पर आप को वाक़ई में कोई साहब अपने कंकाल के लिए आप से तीस क्रोनर मांगते नज़र आ जाएं!

प्राग के होटल के कमरे में अपनी बार. जाहिर है आसमानी बोतल एब्सिन्थ की है. हरी वाली बोतल चेक देश में खूब पी जाने वाली औषधीय शराब बेखेरोव्का की है.



प्राग का सबसे बड़ा आकर्षण है व्रत्लावा नदी पर बना चार्ल्स ब्रिज. पुल पर दोनों तरफ़ सन्तों की पीतल की ऊंची ऊंची मूर्तियां ऐसा आभास देती हैं मानो किसी ऊंची जगह से आप पर निगाह रखी जा रही हो. समय बीत चुकने के साथ ये मूर्तियां काली पड़ चुकी हैं. मिथक है कि इन सन्तों में से एक ऐसे भी भी जिन्हें मूर्ति में बदले जाने से पहले वे पूरी तरह मृत नहीं हुए थे.

भोर में चार्ल्स ब्रिज


१४वीं सदी में सम्राट वेन्सेस्लास चतुर्थ की पत्नी महारानी ने सेन्ट जॉन ऑफ़ नेपोमूक के समक्ष एक बार कन्फ़ेशन किया था. जब सन्त ने वेन्सेस्लास को यह बताने से मना कर दिया कि महारानी ने उनसे क्या कहा था तो उन्हें पुल से नीचे नदी में फिंकवा दिया गया. बताते हैं कि तीन सौ साल तक उसकी आत्मा पुल पर भटकती देखी जाती थी. सत्रहवीं सदी में जाकर उनकी आत्मा को इस पुल की एक मूर्तियों में 'जम चुके' प्रेत की शक्ल में स्थापित कर दिया गया. अब यह कहा जाता है कि यदि आपने किसी बात को सब से छिपा कर रखना हो तो इस मूर्ति को छू देने से उस बत को कोई कभी नहीं जान सकता. इस बात की तस्दीक करने के लिए काले पड़े पीतल की मूर्तियों के समूह में सिर्फ़ इसी एक मूर्ति के एक हिस्से का चमकदार पीतल आज भी जस का तस है क्योंकि चार्ल्स ब्रिज आने वाला हर पर्यटक इस हिस्से को जिज्ञासावश ही सही एक बार छूता ज़रूर है सो इतने असंख्य स्पर्शों के कारण इस हिस्से पर लगभग रोज़ ही बढ़िया पॉलिश होती रही है.

चार्ल्स ब्रिज पर सेन्ट जॉन ऑफ़ नेपोमूक की मूर्ति छूती हमारी एक पारिवारिक मित्र डॉ. सूसाने लिन्ड.

सदियों बाद भी पीतल की वही चमक बरकरार है


एक मिथक यह भी है कि इस पुल पर मध्यकालीन समय में दस बड़े भूस्वामियों का सिर कलम कर दिया गया था. अब जो भी कोई आधी रात को इस पुल को पार करने की ज़ुर्रत करता है ये दस भूस्वामी एक डरावना कोरस गाते हुए उसकी ऐसी तैसी करने में कतई कोताही नहीं बरतते.

इतने सारे महान भूतों की उपस्थिति के बावजूद प्राग के सर्वप्रसिद्ध प्रेतों में अब भी रब्बी लोव और गोलेम माने जाते हैं. प्रेतों-भूतों का सबसे बड़ा ठिकाना अलबत्ता अब भी पुराना यहूदी कब्रिस्तान है जिस पर एक पोस्ट आप पहले इसी ब्लॉग पर देख चुके हैं.

15 comments:

समय चक्र said...

बढ़िया रोचक किस्से है . धन्यवाद.

sanjay vyas said...

इस तरह के किस्से अपन को भी बड़े पसंद हैं. मेरी दादी ऐसे किस्सों का एक बड़ा वाचिक कोष सम्हाले रही. ज़ाहिर है उसके पास प्राग के भूतों के किस्से तो नहीं थे अलबत्ता उनसे कम भी नहीं थे.अक्सर वे भूत मानवीय समाज व्यवहार की मर्यादाओं में ही रहते थे.
कुमाऊं के भूतों की वाचालता देखना रोचक रहेगा.

पारुल "पुखराज" said...

खूब बढिया !

Ashok Kumar pandey said...

यह शराब कौन सी बीमारी में पी जाती है भाई…

हमें बीमार पडना है!!!!

शरद कोकास said...

एक सच्चाई लिखना आप भूल गये कि दो पेग हलक से नीचे उतरने के बाद ही भूत दिखते है और उन्हे ही दिखते है जो मन से देखना चाहते है .यह भी सही है कि हम अपने देश के अन्धविश्वास पर ही गर्व करते है जबकि हमसे बड़े वाले भी मौज़ूद है . चलिये मज़ा लेने के लिये अच्छा है .

परमजीत सिहँ बाली said...

बढ़िया रोचक किस्से है|

मुनीश ( munish ) said...

@"एक सच्चाई लिखना आप भूल गये कि दो पेग हलक से नीचे उतरने के बाद ही भूत दिखते है और उन्हे ही दिखते है जो मन से देखना चाहते है ."
आलिमों का फरमाना है के इंसान गुरूर न करे ! सूंघने में वो कुत्ते से गया बीता ,याददाश्त में हाथी से पीछे और देखने की सिफत में चील से कमतर है . रंग के शेड सिर्फ उतने नहीं जितने वो देख पाता है , आवाज़ें सिर्फ उतनी नहीं जितनी वो सुन पाता है ऐसा साइंस कहती है ! होने वाली मौत की खबर कुत्ते को पहले हो जाती है , क्यों ? क्योंकि रूहों की दुनिया में वो झाँक सकता है . उस दुनिया की बातें जितनी कम की जाएँ अच्छा है . लगता है बजरंग -बाण का पाठ लगाना होगा अब चूंकि बेचैन रूहों को दावत देने का ये खेल खतरनाक हो सकता है .

मुनीश ( munish ) said...

ये सच है की मार के आगे भूत भी भागता है मगर वो होता नहीं ये कहना नकारना है विलियम शेक्सपीयर को , उन तमाम राष्ट्राध्यक्षों को जिन्होंने लिंकन का प्रेत व्हाइट हाउस में देखा है कई बार , अमृता प्रीतम से लेके रस्किन बोंड तक भरे पड़े हैं ऐसे अनुभव जो कहते हैं...श..शः.. कोइ है ....देखो कौन है ठीक तुम्हारे पीछे !

Swatantra said...

Hi Deepa

It was beautiful stay at your place.. We enjoyed it..

Your blog is amazing.. will be following you now..

Do visit my blog, next post is going to about Sonapani.

प्रेमलता पांडे said...

bhoot-puran darawna!

प्रीतीश बारहठ said...

Dear Ashok Ji,

Jindon ki kahaniya bhi suni hai aur suna hai ye bhot se alag hate hain. Meri par-sar dadisa ki kucha chudail dosth batayee aur ve unake yahan hone vale utsavon me sirkat karane gai to unhen sone ke jua saugat me mile bataye. bachpan me ye kahaniyan jitna romanchit karti thi utna hi darati bhi thi.

pankaj srivastava said...

वाह..क्या बात है..गऊ पट्टी का दुख दूर हुआ... राजेंद्र अवस्थी के संपादकत्व में हर दूसरे महीने नसों में झुरझुरी पैदा करने वाली भूतिया कहानियों से भरी कादम्बनी की कमी पूरी कर दी महाराज.. वैसे भी, जब भविष्य पर बात करना मुश्किल हो जाए, तो काबिल लोग भूत की शरण में ही जाते हैं....आभासी दुनिया की ये चटक चांदनी मुबारक हो!

मुनीश ( munish ) said...

@"Jindon ki kahaniya bhi suni hai ...."
Say Jinnaat or Djins . It is believed that Dead hindus become Bhut s whereas Muslims become Jinn s . I don't believe in this discrimination though.

naresh singh said...

मजेदार किस्से है ।

अनूप शुक्ल said...

किस्से मजेदार!