Tuesday, August 18, 2009
गोल उम्मीदों का चांद लुढ़क रहा है बादलों के बीच
येहूदा आमीखाई का नाम कबाड़ख़ाने के पाठकों के लिए अपरिचित नहीं है. उनकी कई कविताएं यहां पहले भी प्रस्तुत की जा चुकी हैं. युद्ध और विस्थापन और इन से जुड़ी त्रासदियां येहूदा की कविता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. पाठक 'बम का व्यास' शीर्षक कविता को अभी शायद न भूले हों और 'मेरे समय की अस्थाई कविता' को भी.
आमीखाई की प्रेम कविताएं अपनी ताज़गी और एक ठोस इरोटिसिज़्म की वजह से चमत्कृत करने से ज़्यादा हैरान करती हैं. प्रेम के बारे में बात करते हुए वे एक कविता में पहले भी साफ़ कर चुके हैं कि:
मेरे प्रेम भी नापे जाते हैं युद्धों से
मैं कह रहा हूं यह गुज़रा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद
हम मिले थे छह दिनी युद्ध के एक दिन पहले
मैं कभी नहीं कहूंगा '४५-'४८ की शान्ति के पहले
या '५६-'५७ की शान्ति के दौरान
आज इसी मूड की कुछ कविताएं पढ़िये मेरे प्रियतम कवियों में शुमार येहूदा आमीखाई की :
एक स्त्री के लिए कविताएं
१.
तुम्हारा शरीर है सफ़ेद रेत
जिसके ऊपर बच्चे कभी नहीं खेले हैं
तुम्हारी आंखें दुःखभरी और सुन्दर हैं
जैसे स्कूली किताबों में फूलों के चित्र होते हैं
तुम्हारे बाल झूलते हैं
केन की वेदी के धुंए की तरह
मुझे अपने भाई की हत्या करनी है
मेरे भाई ने करनी है मेरी हत्या
२.
हम दोनों के साथ घटी बाइबिल की सारी गाथाएं
और चमत्कार
जब हम साथ थे
ईश्वर की शान्त ढलान पर
हम कुछ देर कर सके आराम
गर्भ ही हवा चली हमारे लिए हर जगह
हमारे पास समय था
३.
घुमक्कड़ों के घुमक्कड़पन जैसा दुखी है मेरा मन
मेरी आशाएं विधवा हैं
मेरे अवसरों का कभी विवाह नहीं होगा
हमारा प्यार एक अनाथालय में
पहने हुए है अनाथ बच्चों की पोशाकें
दीवार से टकरा कर रबर की गेंद
वापस आती है हाथों में
सूरज वापस नहीं आता
हम दोनों एक छलावा हैं
४.
सारी रात तुम्हारे ख़ाली जूते
तुम्हारे बिस्तर के बग़ल में चीख़ते रहे
तुम्हारा दायां हाथ तुम्हारे ख़्वाब से नीचे झूलता रहा
तुम्हारे बाल हवा की फटी हुई किताब में से
रात को पढ़ रहे थे
हिलते हुए परदे
विदेशी महाशक्तियों के राजदूत
५.
अगर तुम अपना कोट उतारोगी
तो मुझे दूना करना होगा अपना प्यार
अग्र तुम गोल, सफ़ेद हैट पहनोगी
मुझे उन्नत करना होगा अपना रक्त
जहां तुम प्यार करती हो
उस कमरे से सारा फ़र्नीचर हटाना होगा
सारे पेड, सारे पहाड़, सारे महासागर ...
बहुत संकरी है दुनिया
६.
ज़ंजीर से बंधा चांद
निश्शब्द रहता है बाहर
जैतून की शाखाओं में उलझा चांद
ख़ुद को मुक्त नहीं कर पाता
गोल उम्मीदों का चांद
लुढ़क रहा है बादलों के बीच
७.
जब तुम मुस्कराती हो
गंभीर विचार थक जाते हैं
रात भर तुम्हारी बग़ल में मूक खड़े रहते हैं पहाड़
रेत जाति है सुबह तुम्हारे साथ-साथ समुद्र-तट तक
जब तुम भली होती हो मेरे साथ
दुनिया के सारे भारी उद्योग ठप्प पड़ जाते हैं.
८.
घाटियां हैं पहाड़ों के पास
और मेरे पास विचार
वे फैलते जाते हैं वहां तक
जहां कोहरा है और कोई रास्ता नहीं
बन्दरगाह पर पीछे मस्तूल खड़े थे
मेरे पीछे ईश्वर की शुरुआत होती है
रस्सियों और सीढ़ियों के साथ
टोकरों और क्रेनों के साथ
चिरंतनता और अनंत के साथ
वसंत ने ढूंढा हमें
चारों ओर के पत्थर पहाड़ के बाटों जैसे हैं
जिनसे तौला जाता है हमारा प्रेम
तीखी घास सुबकी
उस अन्धेरे स्थान में जहां हम छिपा करते हैं
वसंत ने ढूंढा हमें.
(येहूदा की प्रेम कविताओं पर कबाड़ख़ाने में यह पोस्ट भी देखिए: प्रेम की स्मृतियां)
Labels:
येहूदा आमीखाई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
कवितायें अच्छी लगी....पर इन्हें समझना इतना आसान नहीं....समझने की कोशिश कर रहा हूँ.
@"कवितायें अच्छी लगी....पर इन्हें समझना इतना आसान नहीं....समझने की कोशिश कर रहा हूँ."
मैं आपकी सत्यवादिता का कायल हो गया ! "बहुत अच्छी , मर्मस्पर्शी और सुन्दर" कहने वालों की कमी नहीं मगर सत्य यही है की इन कविताओं को समझने से पहले आपको विश्व युद्ध , होलोकौस्ट, फलिस्तीन समस्या और इन सबसे बढ़कर बाइबिल का ज्ञान होना चाहिए . यहाँ प्रथम कविता तो पूरी तरेह बाइबिल के उस प्रसंग पर आधृत है जहाँ सृष्टी के आरंभ में ईश्वर ने भाई द्वारा भाई के कत्ल के बाद ये श्राप दिया की इंसानी नस्लें एक से दूसरी जगह भटकने को अभिशप्त होंगी .
पश्चिम की घोर नास्तिक कवि़ता भी बाइबिल के प्रसंगों के बिना समझनी कठिन है !
...BY WESTERN I MEAN WEST ASIAN & EUROPEAN BOTH !
कविता नंबर ५ अच्छी लगी. सच में प्रेम के लिए दुनिया भर का अवकाश भी कितना छोटा है!
कुछ कविताओं के बेहतर पाठ के लिए मुनीश जी का शुक्रिया.
उम्मीद है हर अगले पाठ में समझ बेहतर होती जायेगी.
आपका आभार मुनिश जी, इसी तरह तो सीख रहा हूँ.
Post a Comment