Thursday, August 20, 2009

आलिजा म्हारो गोरबन्द नखराळो


करीब एक साल पहले ग्यारह अगस्त को मैंने राजस्थान के लोकसंगीत पर छोटी सी एक पोस्ट लगाई थी और उसमें जैसलमेर के लांगा-मंगणियारों के दो लोकगीत सुनवाए थे. आज बातों बातों में दोस्तों के साथ उनका ज़िक्र चला तो मुझे उस पोस्ट की याद आई. खोज कर देखा तो पता चला कि वे तो अब चल ही नहीं रही हैं क्योंकि लाइफ़लॉगर नामक प्लेयर ने कब का काम करना बन्द कर दिया है.

फ़िलहाल काफ़ी समय से डिवशेयर का प्लेयर ठीक काम कर रहा है.

उक्त दो के अलावा आपके वास्ते इस महान संगीत से तीन और रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूं. आप की सहूलियत के लिए पांचों के डाउनलोड लिंक भी लगा रहा हूं. मैं तो दोपहर से रिवाइन्ड कर कर के सुन रहा हूं. डाउनलोड करें और फ़ुरसत में सुनें सभी को.

मौज गारन्टीड!


आवे हिचकी



डाउनलोड लिंक:

http://www.divshare.com/download/8240902-1ec

लवा रे जिवड़ा



डाउनलोड लिंक:

http://www.divshare.com/download/8240903-cd6
सांवरिया



डाउनलोड लिंक:

http://www.divshare.com/download/8240906-ba8

राधा रानी



डाउनलोड लिंक:

http://www.divshare.com/download/8240905-4cb

गोरबन्द नखराळो



डाउनलोड लिंक:

http://www.divshare.com/download/8240904-ab0

(कल सुनिये कुछ और शानदार आवाज़ों में राजस्थानी लोकसंगीत की कुछ दुर्लभ रचनाएं)

8 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

राजस्थानी संगीत की इस अनुपम भेट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। सब सहेज लिया है।

Publisher said...

अशोक जी बहुत बड़ा काम कर रहे हैं आप। मांगणियार लाखा खां के बारे में मुझे हाल ही जानने को मिला। जोधपुर में कोमल दा ने जितना लोक कलाओं के लिए वह मिसाल है। उसमें मांगणियारों के लिए भी उनका योगदान यादगार है। पिछले दिनों ही लाखा खां राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में पुरस्कृत किए गए हैं। लगे रहे। आपकी जानकारियां पाठकों के लिए अहम हैं। आप जो लिंक दे रहे हैं, इस कला को जानने समझने वालों के लिए अनमोल हैं। शुक्रिया।

जहाजी कउवा said...

सुप्रभात और किसे कहते है
शुक्रवार मतलब मन पहले से ही कुलांचे भर रहा है
और अब ये संगीत सुनते हुए दाढ़ी बनाना :-)
और ऊपर से यह डाउनलोड लिंक के साथ
मतलब अगर कार में भी जायेगा ...
असोक भैया ग्रानटी सच्ची है थारी

sanjay vyas said...

अच्छा लगा इन कलाकारों को यहाँ देख कर.
गोरबंध अपना भी पसंद का है.

के सी said...

बहुत सुंदर पोस्ट है बिना ज्ञान बघारे संगीत की पैरवी करती हुई. लोक संगीत अपना स्वरूप बदलता रहता है और उसकी दीर्घायु के लिए ये बदलाव आवश्यक ही है. आपके द्वारा बचा कर रखे गए इन गीतों को कहीं और नहीं सुना जा सकता क्योंकि लोक गीत को हर बार अलग और नया रंग मिलता है. ये गीत हजारों कलाकारों ने लाख अलग अनुभूतियों में गाये हैं इस लिए हर रिकार्डिंग बहुमूल्य है. आपने जिस गीत को सांवरिया शीर्षक दिया है वो गीत मेहंदी है ये गीत मेहंदी की किस्म के अनुरूप ही अलग बोलों के साथ गाया जाता है इसे मलीर, मालवा और सोजत जैसी जगहों के नाम आते हैं और गीत का रंग थोडा सा अलग हो जाता है. एक गीत को आपने लवा रे जिवड़ा लिखा है ये बहुत सुंदर गीत है जो हृदय पर बार बार आघात सहने के बावजूद मुहब्बत को अल्टीमेट घोषित करता है " लवार जिवड़ा रे ..." गीत का अपभ्रंश हो चुका है हर गायक ने अपने अपनी सुविधा से दोहे जोड़े और घटाए हैं वैसे ये भी अच्छी ही बात है इससे गीत को नवप्राण मिले हैं . ये गीत और एक भजन सभी मंगणियारों के गाये हुए है इनमे एक भी लंगा स्वर मुझे सुनाई नहीं दिया. आज का दिन आपके सुनाये इन गीतों / भजन के नाम हो चुका है, कई बार सुन चुका हूँ .
कल की अथवा अगली पोस्ट के लिए प्रतीक्षा बनी रहेगी.

प्रीतीश बारहठ said...

मैं राजस्थान से हूँ आपका आभार प्रगट करता हूँ।

Ashok Pande said...

भाई किशोर चौधरी जी

आपकी टिप्पणी ज्ञानवर्धक है.

संगीत के मामले में मैं तो (संजय पटेल जी के शब्दों में )कानसेन ही हूं. अच्छा संगीत समझ में आ जाता है बस. म्युज़िक टुडे के ये दो अल्बम मेरे पास पिछले क़रीब पन्द्रह सालों से हैं और बेतरह पसन्द भी हैं लेकिन दुर्भाग्यवश आसपास कभी कोई ऐसा नहीं रहा जो इन लोकगितों/धुनों के अर्थ बता सकता.

आप की टिप्पणी का शुक्रिया और यह उम्मीद भी कि जल्द ही लगने वाली गोरबन्द की एक दूसरी प्रस्तुति पर आपकी लम्बी समीक्षात्मक टिप्पणी आएगी.

शुभ!

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

लोग गीत सुनाने का ऐसा लत लगा है की क्या बताएं, बंगलोर के planetM & musicworld के चक्कर लगता रहता था, बहुत परिश्रम के बाद लोक गीतों की ७-८ सीडी (ज्यादातर राजस्थानी ) ऊपर कर पाया | इसके आगे दोनों प्रतिष्ठित store ने हाथ खड़े कर दिए की इसके आगे अब कोई लोक संगीत की सीडी नहीं मांगा सकते | म्यूजिक टुडे या और अन्य साईट से आर्डर करने की सोच ही रहा था के देश से बाहर आना हो गया |

आपका आभार कैसे प्रकट करूँ?

सच बताऊँ मेरे घर वाले परेशां रहते हैं की मैं क्या उल-जलूल सुनता रहता हूँ | मैं आज तक ये नहीं समझा पाया की लोग गीत अनमोल नायब हीरा है |