Monday, August 31, 2009
फ़क़त इसलिए कि "मुलाक़ात का वक़्त" ख़त्म हो चुका
१९६५ में बग़दाद में जन्मी दुन्या मिखाइल अब अमेरिका में रहती हैं. अपने विचारों की वजह से उन्हें ईराक में बेतहाशा धमकियां मिलीं और नब्बे के दशक के आखिरी सालों में उन्हें मातॄभूमि छोड़ने पर विवश होना पड़ा. कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय इनामात से नवाज़ी जा चुकी दुन्या मिखाइल की तीन कविताएं पेश हैं:
१.
क़ैदी
वह नहीं समझती
क्या होता है "अपराधी" होना
वह क़ैदख़ाने के द्वार पर प्रतीक्षा करती है
जब तक कि वह उसकी निगाहों के सामने नहीं आ जाता
ताकि उस से कह सके "अपना ख़याल रखना"
ठीक जिस तरह वह उसे याद दिलाया करती थी
जब वह स्कूल जा रहा होता था
या काम पर
या आने वाला होता था लम्बी छूट्टियों के लिए
वह नहीं समझती
सींखचों के पार
वर्दी पहने वे लोग
क्या बक रहे हैं
अलबत्ता तय उन्होंने ही किया है
कि वह वहां रहेगा
उदास दिनों वाले अजनबियों के साथ
उसे कभी ख़याल नहीं आया था
उन सुदूर रातों के दौरान
उसके बिस्तर के पास लोरियां गाते हुए
कि उसे कभी रखा जाएगा
बग़ैर खिड़कियों और चन्द्रमाओं वाली
इस ठंडी जगह में
वह नहीं समझती
नहीं समझती वह जो माता है क़ैदी की
कि वह क्यों छोड़ जाए उसे
फ़क़त इसलिए कि "मुलाक़ात का वक़्त" ख़त्म हो चुका!
२.
अमेरिका
मेहरबानी कर के मुझ से मत पूछो, अमेरिका
- मुझे याद नहीं
किस कूचे में
किसके साथ
या किस सितारे के नीचे
मुझसे मत पूछो
मुझे याद नहीं
लोगों की त्वचाओं का रंग
या उनके दस्तख़त
मुझे याद ही नहीं
कि उनके पास हमारे चेहरे थे
या हमारे ख़्वाब
कि वे गा रहे थे
या नहीं
कि वे बांए से लिखना शुरू कर रहे थे
कि दांए से
या लिख भी रहे थे कि नहीं
घरों में सो रहे थे
या फ़ुटपाथों पर
या हवाई अड्डों में
३.
नगीना
अब वहां से नदी पर निगाह नहीं डाली जा सकती
वह शहर में भी नहीं है अब
नक्शे में भी नहीं
वह पुल जो था
वह पुल जिसे हम पार किया करते थे हर दिन
वह पुल
युद्ध ने उछाल दिया उसे नदी की तरफ़
ठीक जिस तरह 'टाइटैनिक' पर सवार वह महिला
उछाल देती थी अपना नीला हीरा
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दुन्या मिखाइल
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4 comments:
Bahut Sundar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Wow !
behad khoobsurat kavitayein.
Dhanywaad.
Wow !
behad khoobsurat kavitayein.
Dhanywaad.
दुन्या मिखाईल से उनकी कविताओं द्वारा परिचय करने के लिए आभार ..!!
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