Monday, September 28, 2009

ब्लॉगवाणी की टीम से विनम्र अनुरोध



कुछ दिन ब्लॉगजगत से दूर रहा. आज अभी अभी पता लगा है कि हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटर ब्लॉगवाणी को बन्द करने का दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला लिया जा चुका है.

पिछले दो वर्षों से श्री मैथिली गुप्त और उनकी टीम के अथक प्रयासों से चल रहा यह निस्वार्थ महाकार्य अपनी प्रतिबद्धता और त्वरित सेवा के चलते बहुत लोकप्रिय बन चुका था. कबाड़ख़ाना शुरू होने के उपरान्त जब पहली बार ब्लॉगवाणी ने हमारी पोस्ट्स को प्रदर्शित करना शुरू किया था, उन दिनों महसूस होने वाली रोमांचभरी प्रसन्नता आज भी ब्लॉगजगत में हासिल हुई सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिनता हूं.

हिन्दी में ब्लॉगिंग अभी भी एक बनती हुई विधा है. लेकिन इसे शैशव के उन अनिश्चितता भरे दिनों से इस मुकाम तक लाने में ब्लॉगवाणी की टीम का बड़ा योगदान है. आज यदि करीब दस हज़ार से ज़्यादा लोग हिन्दी में ब्लॉगिंग कर रहे हैं तो इस तथ्य के पीछे ब्लॉगवाणी का बहुत बड़ा हाथ रहा है.

इस समूचे प्रकरण की वजहें जो भी रही हों, गहरे आहत करने वाला कुछ न कुछ ऐसा हुआ ज़रूर है जिसने इतना बड़ा फ़ैसला लेने पर विवश किया ब्लॉगवाणी को.

मैं कबाड़ख़ाने के सारे सदस्यों की तरफ़ से श्री मैथिली गुप्त जी से निवेदन ही कर सकता हूं कि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें. हिन्दी ब्लॉगिंग को आपके इस एग्रीगेटर की और आपके दिशानिर्देशन की ज़रूरत है.

बाक़ी अपनी 'गुडबाई' पोस्ट में आप ने लिखा ही है:

"ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी. पिछले दो सालों में बहुत से नये अनुभव हुए, मित्र भी मिले. उन सबको सहेज लिया है, लेकिन अब शायद आगे चलने का वक्त है. तो फिर अब हम कुछ ऐसा करना चाहेंगे जिससे फिर से हमें मानसिक और आत्मिक शांति मिले."

आपकी मानसिक और आत्मिक शान्ति को अब भी हम सर्वोपरि मानते हैं.

आमीन!

13 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

"ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी"
परंतु ब्लागवाणी देखना हमारी रोज़ की मजबूरी है...इसलिए आप कृपया पुन:विचार करें॥

Vinay said...

विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Anonymous said...

अरे ब्लागवाणी वालो भाईजी के अनुरोध पर ध्यान दे ...... इनिकी अपील मेरी अपील भी समझे ?

शायदा said...

बिल्‍कुल सही कहा अशोक जी ने। हिंदी ब्‍लॉग्‍स अभी जिस अवस्‍था में हैं वहां ऐसे एग्रीगेटर्स के सहारे उन्‍हें पहचान और एक दूसरे तक पहुंचने का मौका मिलता है। मेरे जैसे ब्‍लॉगर जो सिर्फ ब्‍लॉगवाणी से ही पोस्‍ट देखा करते थे, उन्‍हें आज बहुत दिक्‍कत हो रही है। मैंने कभी कोई ब्‍लॉगरोल नहीं बनाया न ही फीड वाला ऑप्‍शन लिया। एक या दो ब्‍लॉग्‍स से मेरे पास ऐसी जानकारी मेल के जरिए आती है।
एक बार और गुजारिश यही है कि फैसले पर दोबारा सोचें।

Vinashaay sharma said...

बलोगवाणी टीम से इसको दुबारा चलाने की अपील करता हूं ।

डा. अमर कुमार said...

ब्लागवाणी का यह निर्णय किन्हीं निहित तत्वों के मँसूबों को फलीभूत कर रहा है,
बल्कि होना तो यह चाहिये था कि, इनकी अवहेलना कर इस पर तुषारापात किया जाये,
ऎसा तभी सँभव है, यदि यह टीम अपने फैसले पर पुनर्विचार कर कुछ कड़े तेवर के साथ प्रकट हो ।

मैंनें गूगल रीडर का प्रयोग कभी नहीं किया, क्योंकि ब्लागवाणी सदैव मेरे ब्राउज़र का होमपेज रहा है ।
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Kavita Vachaknavee said...

सामाजिक कार्यों में अप-वाद से कौन बच सका है भला?
मुझे ब्लोगवाणी के नए व अधिक सशक्त रूप में पुन: पुरानी धाक के साथ लौटने का पूरा भरोसा है| बस थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी| शीघ्र ही सुसंवाद मिलेगा|

Rachna Singh said...

http://74.125.153.132/search?q=cache:7RyA8WDr8aoJ:www.websiteoutlook.com/www.chitthajagat.in+chitthajagat&cd=10&hl=en&ct=clnk&gl=in

The relevence of this link can be understood in context of this post when seen in a broder canvass

Girish Kumar Billore said...

यह सभ्य-संस्कृति की कोई सही मिसाल नहीं है "कोई" भी किसी के अवदान का इतना अपमान करने का अधिकारी नहीं हो सकता जिनने ऐसा किया है कि ब्लागवाणी-टीम हताश हुई दु:खद

मुनीश ( munish ) said...

I unequivocally support this appeal ! I do not want another gloomy page in my book of nostalgia. I want Blogvani back even if i have to pay for it. I condemn the elements responsible for this decision . Long live Blogvani !

L.Goswami said...

मुझे इस बात का बेहद दुःख एवं अफ़सोस है की कुछ विघ्नसंतोषी लोगों की आवाज के आगे हजारों प्रशंसकों की आवाज अनसुनी की गई ..यह हिंदी ब्लॉग जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है. यहाँ की गुटबाजी भयानक आत्मघाती रूप ले रही है. आज तमस और असुरी शक्तिओं पर प्रकाश और सात्विक शक्तिओं के विजय के दिन यह समाचार मुझे खिन्न किये जा रहा है. विनम्र अनुरोध है की ब्लोग्वानी टीम अपने फैसले पर पुनर्विचार करे.

स्वप्नदर्शी said...

मेरा भी निवेदन है कि मैथिली जी पुनर्विचार करें

वाणी गीत said...

ब्लॉग वाणी का इस तरह पलायन ...वो भी विजयदशमी के दिन ...बहुत दुखद रहा ..!!