रामगढ़ ( जिला : नैनीताल ) उत्तराखंड महादेवी वर्मा सृजन पीठ में आयोजित 'हिन्दी कहानी और कविता पर अंतरंग बातचीत' के दो दिवसीय आयोजन ( ३० एवं ३१ अक्टूबर २००९ ) से लौटा हूँ जिसकी रपट भी लिखनी है लेकिन इससे पहले महादेवी वर्मा और निर्मल वर्मा के दो निबन्धों के एकाध हिस्सों को प्रस्तुत करने का मन बन गया है. मल्ला रामगढ़ की देवीधार पहाड़ी पर महादेवी वर्मा ने अपना घर बनाया और गर्मियों में वह यहाँ आया करती थीं किन्तु यहीं रामगढ़ में ही रवीन्द्रनाथ टैगोर भी रहे. महादेवी जी का घर तो अब कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अधीन सृजन पीठ बन गया है किन्तु कवीन्द्र रवीन्द्र की स्मृति से जुड़े स्थान को ( जो अब खंडहर है ) को कोई शक्ल नहीं दी जा सकी है. इस जगह पर कई बार गया हूँ. यहाँ जंगल है, हवा है , शान्ति है ,दूर चॊटियों पर दिखता हिम है और चहुँओर अपनी विशालता से असीसता हिमालय है.
आइए उम्मीद करें कि यह काम जल्द हो और वहाँ भी साहित्य प्रेमियों का आना जाना बढ़े ! अभी तो इस स्थान के बारे दो प्रमुख साहित्यकारों के लिखे दो अंश ही.... नीचे की तस्वीर उसी स्थान की है कभी जहाँ कभी 'गीतांजलि' के कुछ अंश रचे गए थे.......
आइए उम्मीद करें कि यह काम जल्द हो और वहाँ भी साहित्य प्रेमियों का आना जाना बढ़े ! अभी तो इस स्थान के बारे दो प्रमुख साहित्यकारों के लिखे दो अंश ही.... नीचे की तस्वीर उसी स्थान की है कभी जहाँ कभी 'गीतांजलि' के कुछ अंश रचे गए थे.......
* महादेवी वर्मा : 'पथ के साथी' से
हिमालय के प्रति मेरी आसक्ति जन्मजात है। उसके पर्वतीय अंचलों में भी हिमानी और मुखर निर्झरों, निर्जन वन और कलरव-भरे आकाश वाला रामगढ़ मुझे विशेष रूप से आकर्षित करता रहा है। वहीं नन्दा देवी, त्रिशूली आदि हिम-देवताओं के सामने निरन्तर प्रणाम में समाधिस्थ जैसे एक पर्वत-शिखर के ढाल पर कई एकड़ भूमि के साथ एक छोटा बँगला कवीन्द्र का था जो दूर से उस हरीतिमा में पीले केसर के फूल जैसा दिखाई पड़ता देता था। उसमें किसी समय वे अपनी रोगिणी पुत्री के साथ रह रहे थे और सम्भवतः वहाँ उन्होंने ‘शान्ति निकेतन’ जैसी संस्था की स्थापना का स्वप्न भी देखा था; पर रुग्ण पुत्री की चिरविदा के उपरान्त रामगढ़ भी उनकी व्यथा भरी स्मृतियों का ऐसा संगी बन गया जिसका सामीप्य व्यथा का सामीप्य बन जाता था। परिणामतः उनका बँगला किसी अंग्रेज अधिकारी का विश्राम हो गया।
हिमालय के प्रति मेरी आसक्ति जन्मजात है। उसके पर्वतीय अंचलों में भी हिमानी और मुखर निर्झरों, निर्जन वन और कलरव-भरे आकाश वाला रामगढ़ मुझे विशेष रूप से आकर्षित करता रहा है। वहीं नन्दा देवी, त्रिशूली आदि हिम-देवताओं के सामने निरन्तर प्रणाम में समाधिस्थ जैसे एक पर्वत-शिखर के ढाल पर कई एकड़ भूमि के साथ एक छोटा बँगला कवीन्द्र का था जो दूर से उस हरीतिमा में पीले केसर के फूल जैसा दिखाई पड़ता देता था। उसमें किसी समय वे अपनी रोगिणी पुत्री के साथ रह रहे थे और सम्भवतः वहाँ उन्होंने ‘शान्ति निकेतन’ जैसी संस्था की स्थापना का स्वप्न भी देखा था; पर रुग्ण पुत्री की चिरविदा के उपरान्त रामगढ़ भी उनकी व्यथा भरी स्मृतियों का ऐसा संगी बन गया जिसका सामीप्य व्यथा का सामीप्य बन जाता था। परिणामतः उनका बँगला किसी अंग्रेज अधिकारी का विश्राम हो गया।
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** निर्मल वर्मा : 'महादेवी पहाड़ों का बसंत मनाती थीं' से
यह भी विचत्र संयोग ही रहा होगा कि महादेवी ने अपने लिए जो निवास-स्थान चुना था, उससे लगभग तीन किलोमीटर दूर सबसे ऊंची पहाड़ी पर, कभी कवींद्र रवींद्र रहा करते थे वे सन् 1903 में अपनी बीमार बेटी के स्वास्थ्य लाभ के लिए यहां आये थे उन्होंने अपनी कुटी का नाम 'गीतांजली' रखा था, जिसकी कुछ कविताएं उन्होंने यहां रखी थी आज उनके घर के नाम पर सिर्फ पत्थरों के ढूह दिखायी देते हैं क़ितना अजीब है, जिस कृति के नाम पर रवींद्रनाथ को विश्वख्याति मिली, उसी के नाम का आवास- स्थल आज खंडहरों में दिखायी देता है।
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( रामगढ़ पर कुछ यहाँ भी है। मन करे तो देख लें )
6 comments:
many times i wished to visit Ramgarh ! thanx for rekindling the desire.
आभार आपने घूमा दिया.
प्रकृति संबन्धी पोस्ट पर कमेंट्स
कम ही किये जाते हैं यानी बात साफ़ है की
अधिकांश ब्लॉगजगत मनोरोगियों से भरा पड़ा है .ऐसी सकारात्मक पोस्ट पर
टिप्पणियों का ये हाल देख कर जी ऊब से भर जाता है.
nainital(kumaun) to vaise hi swarg se bhi sundar hai,us par do do kaviyaon ke sparsh se kis adbhut sondarya se bhar gaya hoga iski sirf kapana hi ki ja sakati hai.ye bhi kya thik nahi ise pracharit kar ke paryatan sthal nahi banaya gaya ,kam se kam aap ekant mein divya atmaon ki upasthiti ko anubhut to kar sakate hai.
महादेवी वर्मा जी की भांजी, श्रीमती अचला कुमार को मैंने आपका ये लिंक भेजा था- उनका जवाब-
Dear Manoshi,
Thanks for sharing it with me. The place has so many fond memories of my childhood days. We spent many summers there and had a wonderful time. Some times my nana, mama and other relatives would go there as well. It is still a very remote and beautiful place. We visited it once when we were in India and found it very peaceful.
ye dekh kar meri bhee soch kuch pal silvaton main badal gayee thee vahan, jahan is Ravindr ji ke pahad ka kewal naam hee shesh rah gaya ....
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