Saturday, November 7, 2009

जहां सूर्य स्त्री है और चंद्रमा पुरूष

वह भी कोई देश है महाराज, भाग-12
शिलांग में एक नए दिल्ली विरोधी आंदोलन की हलचल थी। राजनेताओ के भीषण भ्रष्टाचार, दलबदल और उग्रवादियों के खून-खराबे से डरे खासी समाज पर इसका असर होता दिख रहा था। इस आंदोलन को राज बहाली के लिए लड़ने वाले प्रतिबंधित खासी संगठन हाईन्यूत्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल (एचएनएलसी) का समर्थन हासिल था। जमाने बाद जर्जर अंगरखे, पगड़ियां और जंग लगी तलवारें निकाली जा रही थीं। उसी हफ्ते मेघालय के सबसे बड़े राज्य खीम का दरबार लगा, वहां के राजा बालाजीक सिंग सीयेम ने पारंपरिक जनतंत्र बहाल करने के लिए राजनीतिक क्रांति का नारा दिया। एक छोटे राज्य नांगस्टाइन का भी दरबार लगने वाला था जहां के राजा सीयेम सिब सिंग ने 1947 में सरदार बल्लभ भाई पटेल के राज्य अधिग्रहण प्रस्ताव पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था और इसी कारण उप राजा विक्लिफ सीएम ने अपना जीवन निर्वासन की हालत में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में बिताया। मेघालय के उग्रवादी उनको खासी जनजाति की स्वाधीनता के लड़ने वाले शहीद का दर्जा दे चुके हैं। नांगसाईच और राजब्राई दो राज्यों ने विलय अस्वीकार कर दिया तो डिप्टी कमिश्नर और अंग्रेजों के डोमिनियन एजेंट जीपी जॉरमन ने धमका कर उनसे हस्ताक्षर कराए। वैसे यह एक तथ्य है कि जिन दिनों बड़े-बड़े महाराजा पनाह मांग रहे थे, इन दोनों बेहद लघु राज्यों ने सबसे बाद में भारत का हिस्सा होना स्वीकार किया था। अब लग रहे दरबारों में भाषण हो रहे थे कि भारत ने खासी राज्यों पर जबरन कब्जा कर लिया है।

लघु राज्यों के राजा अपने लोगों को समझा रहे थे कि पंद्रह जनवरी 1947 को असम के राज्यपाल अकबर हैदरी और खासी राज्यों के बीच जो समझौता हुआ था उसके मुताबिक रक्षा, मुद्रा और विदेश मसलों को छोड़कर बाकी सारे मामले राज्यों के अधीन होने चाहिए थे। बाद में धोखे से इन राज्यों को संविधान की छठी अनुसूची में डालकर पारंपरिक ढंग से प्रशासन चलाने के लिए खासी, गारो और जयंतिया जिलों में स्वायत्तशासी परिषदों की स्थापना कर दी गई। इस कारण सीयेम नाम के राजा रह गए हैं और अब परिषदें उन्हें मोहरों की तरह हटाती और बिठाती रहती हैं। 1998 के लोकसभा चुनाव में अपने पैर जमाने के लिए भाजपा ने पहली बार वादा किया था कि वह अकबरी समझौते को मूल रूप में लागू कराएगी। अगले चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस यानि घड़ी छाप पार्टी बनाकर अस्तित्व के लिए जूझ रहे गारो जनजाति के पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा ने वादा किया कि वे राज बहाली के लिए संविधान में संशोधन कराएंगे। तभी संविधान समीक्षा आयोग बना और इस मुद्दे को ढंग से हवा मिल गई।

परंपरागत कानून, रिवाजों और पुरानी संस्थाओं की रखवाली के लिए जो स्वायत्तशासी जिला परिषदें बनीं उनका तेजी से सरकारीकरण हुआ और मंत्रियों, विधायकों की नकल में वहां भी तिकड़म, भाई भतीजावाद का बोलबाला हो गया। मेघालय के दलबदल के उस्ताद नए नेताओं की नर्सरी ये जिला परिषदें ही हैं जिन्हें राजाओं के चुनाव को मान्यता देने और हटाने का अधिकार है। उनका ब्रह्मास्त्र संयुक्त खासी, जयंतिया (नियुक्ति और उत्तराधिकार) अधिनियम, 1959 है। जो राजा उनके माफिक नहीं बैठते हटा दिए जाते हैं। जिला परिषदों का कहना है कि ज्यादातर राजा पियक्कड़ और भ्रष्ट हैं। उन्हें संविधानिक मान्यता मिली तो वे अपनी हांकने वाले जमींदारों में बदल जाएंगे। वे पैसों के बदले जमीनों के पट्टे गैर आदिवासियों को देने को तैयार रहते हैं। इन अंगूठा टेक राजाओं का टैक्स वसूली और हिसाब किताब का जो तरीका है, उसमें धांधली की गुंजाइश हमेशा रहती है। इस झगड़े के अलावा सबसे बड़ा पेंच यह है कि आज के मेघालय पारंपरिक, भारत सरकार का और जिला परिषद का तीन कानून एक साथ चलते हैं, जिनके मकड़जाल में लोग झूलते रहते हैं। मिसाल के लिए राजधानी शिलांग के मोहल्लों में भी पुलिस पारंपरिक मुखियाओं की इजाजत लिए बिना घुस नहीं सकती। उग्रवादियों की धर-पकड़ में यह सबसे बड़ी बाधा है।

राजा के घर के बाहर दोपहर की चटक धूप में भी ठंडी हवा के दांत किटकिटा रहे थे। जिन घरों के बित्ता भर भी लाननुमा जगह थी, संतरे लदे हुए थे। सुंदर, पीली लड़कियां दुकान की मालकिन के गरूर से कारोबार चला रही थी। मातृसत्ताक समाज में पले होने का आत्मविश्वास उनके चेहरों पर था। दिलचस्प यह है कि खासी लोक कथाओं में सूर्य स्त्री है और चंद्रमा पुरूष। खासी पुरूष वाकई अपनी स्त्रियों की रोशनी में ही दिखाई पड़ते हैं। यहां संपत्ति का हस्तांतरण सबसे छोटी बेटी के नाम होता है। पुरूष को बैंक से कर्ज लेना हो तो गारंटी औरतों की ही चलती है। लेकिन ये सुंदर लड़कियां मुस्काने तक तो ठीक थीं, लेकिन उनके हंसते ही मेरे भीतर भय की लहर उठने लगती थी। इनमें से ज्यादातर के दांत मसूड़ों के ऊपर लाल रंग की आरी की तरह खुल जाते थे जो बचपन से क्वाय (मेघालय का तामुल) खाने के कारण वे घिस चुके थे। इन दांतों को धारण करने वाले सुंदर मुंह पौराणिक कथाओं की खलनायिकाओं की याद दिलाने लगते थे।

खासी मोनोलिथराजा से मिलने के बाद नए राजा यानि मुख्यमंत्री ईके मावलांग से मिलना जरूरी था ताकि जाना जा सके कि राज बहाली आंदोलन के बारे में उनकी सरकार क्या सोच रही है। उनके गृहमंत्री टीएच रंगाद हिमा मिलियम के दरबार मे जाकर पुराने राजा के प्रति अपनी निष्ठा सार्वजनिक कर आए थे। मुख्यमंत्री कैबिनेट की मीटिंग में थे और हम लोगों को शाम तक लौटना था। सटीक जुगाड़ की तलाश में टिप्पस लगाते हुए अंग्रेजी के अखबार मेघालय गार्जियन के दफ्तर एक अत्यंत शालीन, पियक्कड़ रिपोर्टर फ्रैंक से मुलाकात हो गई। फ्रैंक का बड़ा भाई मंत्री की हैसियत से कैबिनेट मीटिंग में अंदर था। उसने तुरंत एक फोन करके इन्टरब्यू का इंतजाम कर दिया। मैने पहला मुख्यमंत्री देखा जिसने कैबिनेट की मीटिंग में प्रेस को बुला लिया। पूर्वोत्तर में हिंदी पट्टी के नेताओं की तरह सामंती ठसक और चोंचलेबाजी बहुत कम है। उनसे अब भी सहज ढंग से मिला जा सकता है। मावलांग ने सर्तकता से कहा कि पारंपरिक राजाओं और संस्थाओं का अस्तित्व वे मानते हैं और उन्होंने कभी उनमें हस्तक्षेप नहीं किया। गृहमंत्री रंगाद का कहना था कि वे दरबार में मंत्री के रूप में नहीं अपने समुदाय के मुखिया की हैसियत से गए थे। (जारी)

5 comments:

नई पीढ़ी said...

बहुत ही इंट्रेस्टिंग अनुभव है, जारी रखिए. मैंने इसका लिंक अपने ब्लॉग पर भी दिया है.

siddheshwar singh said...

* बहुत सही चल रहा है भाई यह गद्य !

**सिर्फ यात्रावृत भर नहीं है यह.

*** कितने स्टार दिए जायें अनिल बाबू आपकू?

कामता प्रसाद said...

स्‍टार क्‍यों दिये जायें। स्‍पीड बहुत धीमी है उसे तेज करें दनादना पोस्‍टें लगायें फिर स्‍टार देने की बात कीजिएगा।

मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
मुनीश ( munish ) said...

A must read for every Gobar-patti dweller like me!