आज एक बार फिर निज़ार क़ब्बानी की दो प्रेम कवितायें ! प्रश्न मेरे महबूब ने पूछा :
'क्या अन्तर है
मुझमें और आसमान में ?'
अन्तर , मेरे प्यार,
बस इतना ही :
कि जब हँसते हो तुम
तो मैं भूल जाता हूँ आसमान ।
पागलपनओह, मेरे प्यार
अगर तुम पहुँच जाओगे
पागलपन के मेरे मुकाम तक
तो गला दोगे अपने सारे आभूषण
बेच आओगे अपने कंगन
और मेरी आँखों में
सो जाओगे
सुख की नींद ।
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( निज़ार क़ब्बानी की कुछ कवितायें और परिचय
यहाँ और
यहाँ और
यहाँ भी )
11 comments:
एक लफ्ज में.....बेहतरीन...
असाधारण शक्ति का पद्य
निज़ार क़ब्बानी की रचनाएँ-गजब!! आपका आभार!!
''और मेरी आँखों में
सो जाओगे
सुख की नींद ।
-------------''
अच्छी अभिव्यक्ति ...
सधे भाव और सधी भाषा ...
कब्बानी जी पर सिलसिलेवार रूप से साडी कवितायेँ पढ़ी हैं... जैसे आपका दिल आया.. हमारा भी आया...
पागल प्रेमी :)
निज़ार क़ब्बानी की रचनाओं का रसास्वादन के लिए धन्यवाद!!
- सुलभ
गजब की रचना।
prem aur jivan ki ye kavitayen shamsher ki yad dilati hain.
लाजवाब कविताएँ। पढवाने के लिए आभार।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
गहरी सोच दोनों के लिए कहूँगा वाह वाह अति सुंदर.
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