* याद करें आज से कई बरस पहले एक फिल्म आई थी 'गोदाम'। ....कुछ याद आया। इस फिल्म के लेखक / निर्देशक थे दिलीप चित्रे।
* याद करें आज से कई बरस पहले दिलीप चित्रे की कविताओं का अनुवाद हिन्दी में चन्द्रकान्त देवताले ने किया था।
दिलीप चित्रे :
मराठी व अंग्रेजी के एक कवि
एक फिल्मकार
एक चित्रकार
एक संपादक....
एक अनुवादक
दिलीप चित्रे :
एक आदमकद इंसान
आज सुबह उनका निधन हो गया। ***** आइए उन्हें याद करें।
'कबाड़खाना' की ओर से श्रद्धांजलि ! प्रस्तुत है उनकी एक कविता:
क्या मेरा वक्त आ गया है / दिलीप चित्रे
( अनुवाद: चन्द्रकान्त देवताले )
क्या मेरा वक्त आ गया है
यहाँ घड़ी नहीं है न है कोई कलेण्डर
पर जानता हूँ
कि पहुँच गया हूँ
पागलपन की स्तब्ध नोक पर
आईने ही दीवारे हैं कफन
कफन ही कैप्सूलें
अवकाश में तैरने वाली
क्या मेरा वक्त आ गया?
मैं हो रहा हूँ वहशी
निर्विकारता में धुँधआता
किसी संत-सा
अपनी ही आँखें उखाड़ता
अंधे आनन्द में नाचता
नापता कुद्ध फासले
मेरे और अपने बीच
करता
अपनी ही शव-चिकित्सा
अपनी ही अँतड़ियों और भेजे के द्रव्य
अपनी ही अस्तित्व के जोड़ और तुरवाई की--
चमड़े के बटुए की जिसमें
सुरक्षित रक्खा था मैंने ब्रह्माण्ड
क्या मेरा वक्त आ चुका है?
इस चीख के भीतर है
एक फैलती हुई खामोशी
स्मतिविहीन मुस्कान
वैश्विक पागलखाने की खिड़कियों के बाहर
झाँकते शब्दों की
पहियेवाली कुर्सी के
चक्करदार वक्तव्य
पिघल रहे हैं धूप में
स्वर्ग के अस्तपताल में हैं
आनन्द के ढलान
मैं पहले से ही फिसल रहा हूँ
ढलानों पर
क्या मेरा वक्त आ चुका है?
-----------
कविता 'कृत्या' से और चित्र 'मस्कारा लिटरेरी रिव्यू' से साभार !
7 comments:
उफ़ सिद्धेश्वर! उफ़ बाबा दिलीप! मैं उनसे मिलना चाहता था एक बार को. इसी कविता का एक दूसरा अनुवाद कभी पोस्टर बना कर कहां कहां नहीं चिपकाया था कभी.
अलविदा बाबा!
बहुत अच्छे कवि और बहुत अच्छे इंसान को खो देना बहुत दुखदायी है।
कैसे-कैसे लोग रुख़सत कारवां से हो गये
कुछ फ़रिश्ते चल रहे थे जैसे इंसानों के साथ।
ab Dilip nahi milenge. milengi unki kritiya. unhe bhavbhini shradhanjali.
याद....और सिर्फ याद।
दिलीप चित्रे का सम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रभावी था।
उनसे मिलने-बात करने का मौका मिला था . बेहद शानदार कवि-अनुवादक-पेन्टर थे . उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं .
विनम्र श्रद्धांजलि
Post a Comment