कल शाम छत पर गपशप करते और मूँगफलियों के जरिए धूप का आनंद लेते - लेते मोबाइल से कुछ तस्वीरें ली हैं । आइए साझा करते हैं :
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ऐसे उतरता है सूरज का तेज
ऐसे घिरता है अँधियारा
ऐसे आती है रात।
ऐसे लौटते हैं विहग बसेरों की ओर
ऐसे ही नभ होता है रक्ताभ
ऐसे ही देखती हैं आँखें सुन्दर दृश्य
फिर भी कम नहीं होता है कुरुपताओं का कारोबार।
11 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ बढ़िया छायांकन के लिए धन्यवाद!
शानदार चित्र रचना को भिगो गये!!
शानदार और मनमोहक।
कितना कुछ उकेर देते हैं ये बरबस...सुंदर छवियाँ..सुंदर पंक्तियाँ..!
बहुत कमाल के चित्र लिए हैं आपने...ये कारनामा मोबाइल की वजह से हुआ है या इसमें आप द्वारा सेवन की गयी मूंगफलियों का भी कुछ योगदान है? कविता बहुत अच्छी कही आपने...बधाई...
नीरज
ऐसे हीं होता है निर्माण किसी सुन्दर स्वप्न का ।
बढ़िया चित्र हैं । धन्यवाद।
... sundar chitra (photos) !!!!
मूंगफली के साथ धनिये और भांग वाला नमक खाया या नहीं? कुछ उस तरह का जैसे अपने DSB के आर्ट्स ब्लाक में मिलता था.
इस तरह के नज़ारे देखे अरसा बीत गया. मुझे अनायास ही तारकोवस्की के सिनेमा का आसमान नज़र आने लगा जो धीरे-धीरे पेंटिंग की शक्ल में बदल जाता है.
very charming indeed !
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