आदमी बाघ को हरा देता है लेकिन बाजार से हार जाता है
(लीलाधर जगूड़ी जी से अनिल यादव की बातचीत का दूसरा हिस्सा)
उस पुरातन साहित्य में क्या चकित करता है आपको?
जैसे यही कि हमारे यहां अग्नि के लिए संघर्ष नहीं है। पश्चिम में अग्नि स्वर्ग से प्रमथ्यु चुरा कर लाया जिसके लिए उसे दंडित होना पड़ा। लेकिन हमारे यहां वह शमी वृक्ष की सूखी टहनियों को रगड़ने से मिल जाती रही है।
क्या हमारे समाज के संघर्ष में यकीन न करने, अलहदी होने, ईमानदार कोशिश के बजाय चमत्कार में यकीन रखने की मानसिकता से इसका कोई रिश्ता बनता है क्या?
हां हो भी सकता है। जो चीज आसानी से मिल जाए तो उसके लिए जूझेगा क्यों कोई।
आपने गाय का जिक्र किया। अभी मैने कहीं पढ़ा था कि चार हजार साल हो गए आदमी ने किसी नए जानवर को पालतू नहीं बनाया। अगर हम अपनी उस परंपरा से जुड़े रहते तो क्या प्रकृति से छीनने के बजाय उससे मैत्री का कोई रिश्ता बन सकता था क्या। क्या लगता है?
प्रकृति मनुष्य की पूरक है लेकिन आदमी प्रकृति के लिए अनिवार्य नहीं है। पशु-पक्षी हैं। पक्षी बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। उसी से जंगल फैला। आंधी, तूफान, भूकंप प्रकृति के जो प्रकोप कहे जाते हैं उसके उत्पादन और नवीनीकरण के साधन हैं। आज प्रकृति के साथ पशु-पक्षी खत्म हो रहे हैं। भूलना नहीं चाहिए कि गमलों में लगे फूलों की जिंदगी भी इन्ही पशु-पक्षियों से चलती है। वे चुपचाप उनके मिलन और प्रजनन को संभव बनाने के काम में लगे रहते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य का जन्म ही प्रकृति के विरूद्ध हुआ है जबकि उसी को प्रकृति की सबसे अधिक जरूरत है।
प्रकृति-पर्यावरण नष्ट होने के दुष्प्रभावों के कारण इधर कुछ चेतना आई है और प्रकृति को बचाने की बात हो रही है।
जैसे कि सेव टाईगर कैम्पेन ?
हां लेकिन देखिए पहाड़ में एक आदमी बाघ को लड़कर हरा देता है लेकिन बाजार के सामने पस्त हो जाता है। बाघ को उसने भगा दिया लेकिन दवाओं के बाजार में अपना इलाज नहीं करा सकता।
5 comments:
बहुत सुन्दर बतकही
वाह......क्या खज़ाना लाये है ...
बहुत अच्छा है/
एक बात पर मत्भिन्नता है-"प्रकृति मनुष्य की पूरक है लेकिन आदमी प्रकृति के लिए अनिवार्य नहीं है।"/
scientifically भी बात करु तो पेड o-2 exhale कर्ते है और co-2 inhale ओर
आदमी का system vice-versa ह /
तो क्या ये एक BALANCE नहि है प्रक्रिति मे??!!,जिसमे आदमी exist कर रहा है??!!....
ऐसी और भी कई बाते निश्चीत तौर पे होन्गी ही......ऐसा मेरा मानना है /
sahi kaha abcd, is srishti me kuchh bhee gairzarooree nahee. aur aadaamee alag nahee. isee srishti ka hissa hai. .......
ham naadan anjane hee aadamee ko "special" banaate hain, fir umeed karte hain ki aadamee eeshwar ko na maane.
sahi kaha abcd, is srishti me kuchh bhee gairzarooree nahee. aur aadaamee alag nahee. isee srishti ka hissa hai. .......
ham naadan anjane hee aadamee ko "special" banaate hain, fir umeed karte hain ki aadamee eeshwar ko na maane.
Post a Comment