हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।
एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती है होली की बहार।।
ज़ाफरानी सजके के चीरा आ मेरे शाकी शिताब।
मुझको तुझ बिन यार तरसाती है होली की बहार।।
तू बगल में हो जो प्यारे रंग में भीगा हुआ।
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।।
और जो हो दूर या कुछ ख़फा हो हमसे मियाँ।
तो , तो काफ़िर हो जिसे भाती है होली की बहार।।
नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम 'नज़ीर'।
फिर बरस दिन के ऊपर जाती है होली की बहार।।
* नज़ीर अकबराबादी
--------------
( चित्र : डा० नार्मन लुईस की कलाकृति , साभार )
7 comments:
और जो हो दूर या कुछ ख़फा हो हमसे मियाँ।
तो , तो काफ़िर हो जिसे भाती है होली की बहार।।
वाह साहब वाह !! दिल ख़ुश कर दिया सुबह सुबह ...... जवाब नहीं नज़ीर अकबराबादी का.
वाह वाह!! आनन्दम आनन्दम!!
नज़ीर अकबराबादी साहेब को पढ़वाने के लिए आभार!!
वाह वाह!! आनन्दम आनन्दम!!
नज़ीर अकबराबादी साहेब को पढ़वाने के लिए आभार!!
हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार.nice
kai kabadi jag gaye hain.shukr hai. varna to akela sipahimorcha sambhale hue tha
ashok\sidheshvar bandhujan kyun na ek post holi ki paintings ki dee jay. ye paintings dekhkar khyal aya. ek hussain ki bhi lagayee thimaine holi par.
होली का अच्छा समा बंध रहा है हुजूर। कबाड़ियों की जय हो।
Post a Comment