Thursday, April 1, 2010

'तुम एक कवि कैसे बन सकते हो?'


कविता की प्रचलित लीक से हटकर कुछ कवितायें जब पढ़ने को मिल जाती हैं तब मन होता है कि इन्हें कविता प्रेमियों के साथ साझा किया जाय । आज इसी क्रम में प्रस्तुत है अमेरिकी कवि ईव मेरियाम (१९१६-१९९२) की एक कविता जिसका शीर्षक बहुत विचित्र है : 'तुम एक कवि कैसे बन सकते हो?' प्रश्न का उत्तर । 'ए स्काई फ़ुल आफ पोएम्स' और 'कैच अ लिटिल राइम' जैसी अनेक मशहूर किताबों की रचनाकार ईव की केवल यह कविता ही नहीं वरन उनकी बहुत - सी कवितायें अलहदा हैं - भाव और कला दोनों ही पक्षों की दृष्टि से। हालांकि उन्होंने बच्चों और बड़ों दोनों के लिए खूब लिखा है किन्तु उनकी ख्याति मुख्यत: बच्चों की कवयित्री और अंग्रेजी भाषा की कुशल शिक्षिका के रूप में ही रही है। तो आइए देखते - पढ़ते हैं यह कविता :

ईव मेरियाम की कविता :
'तुम एक कवि कैसे बन सकते हो?' प्रश्न का उत्तर
( अनुवादक : सिद्धेश्वर सिंह )

किसी पेड़ के एक पत्ते को चुन लो
छानबीन करो उसके वास्तविक आकार की
तलाशो उसके बाहरी कोर - किनारे
और भीतर उभरी लकीरों की लम्बी कतार।

याद करो कि कैसे इसने जकड़ा होगा एक टहनी को
( और यह भी कि शाख पर
कैसे बना होगा टहनी का मेहराब)
कैसे अप्रेल में यह बढ़ जाता है चौगुना
और जुलाई आते ही
कैसे इस पर उगने लगता है कोई कवच।

अगस्त के आखीर में
कौन डाल जाता है इसमें सिलवटें
और महसूस होने लगती है गर्मियों के प्रस्थान की उदासी भरी गंध।

चुभलाओ इसके कठीले तने को
सुनो इसके भीतर बजती हुई शरद की सरसराहट
और नवम्बर मास में देखो
इसके एक - एक अणु को छीजते हुए।

इसके बाद
आयेंगी सर्दियाँ
और जब बाकी नहीं हो एक भी पत्ता
तब अविष्कार करो एक नये पत्ते का।

9 comments:

सु-मन (Suman Kapoor) said...

ये परिकल्पना सिर्फ एक कवि हृदय ही कर सकता है
वाह वृक्ष का जीवन चक्र ............

Udan Tashtari said...

पूरा जीवन चक्र उतार दिया है..बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुत की. आपका आभार.

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

मनीषा पांडे said...

सुंदर कविता।

M VERMA said...

और जब बाकी नहीं हो एक भी पत्ता
तब अविष्कार करो एक नये पत्ते का।
अद्भुत

abcd said...

अप्नी ही प्रकार के चेहरे है...कम दिख्ते है,लेकिन अलग ही पेह्चान मे आते है....जैसे--बलराज साहनी...निर्मल वर्मा....harry potter सफ़ेद बाल दाडी और हाथ मे लक्डी वाले बुड्डे-बाबा.....हरिवन्श राय बच्च्न.....anthony hopkins.....और ये मोह्तर्मा भी /

कितने भारी..गेहरे...दूर तक/अन्दर तक देख्ते हुए....समझ भरी नज़र से /समझ शायद छोटा शब्द है,सही शब्द होगा WISDOM से भरे /

कविता तो है ही गेहरी /

अमिताभ श्रीवास्तव said...

kavita apne aap me shodha kaa bhi bakhoobi se kaam karti he, vo itani aantarik hoti he jnhaa vigyaan pahuch nahi paataa..kyaa ise ishavriya shakti nahi kahaa jaa saktaa?????
aabhaar fir se ek baar , behareen..ke liye

Pratibha Katiyar said...

pyari si kavita!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

इसके बाद
आयेंगी सर्दियाँ
और जब बाकी नहीं हो एक भी पत्ता
तब अविष्कार करो एक नये पत्ते का।
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बस इसी खोज के ज़िंदा रहने का नाम
है ज़िन्दगी....प्रस्तुति स्वयं जीवंत है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन