Thursday, April 15, 2010

आई प्रवीर - द आदिवासी गॉड - ९

(पिछली किस्त से जारी)

यह है स्वतन्त्र भारत के नागरिकों को दिये जाने वाले व्यावहारिक न्याय का एक प्रकार जिसके लिए इस देश के लोगों ने अपना रक्त तथा अन्य संसाधनों को पानी की तरह बहा दिया था. पं. नेहरू ने बड़ी कृपा की और पांच सांसदों के एक आयोग की नियुक्ति बस्तर की समस्याओं की जांच व उनके समाधान के लिए कर दी. इस आयोग ने बस्तर को चुस्त व सक्षम प्रशासनिक व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए बस्तर ज़िले को तीन प्रशासनिक ज़िलों में विभाजित कर देने की सिफ़ारिश की है. अक्टूबर १९६२ में नई महारानी बस्तर आ गईं. कई आदिवासियों का एक समूह महल परिसर के आसपास जमा हो गया तथा वे कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स को हटा देने की मांग करने लगे. बाद में उन्होंने महल परिसर के बाहर मैदान में डेरा डाल दिया प्रसासन से अपना शान्तिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने लगे. मध्यप्रदेश शासन ने महल के आधे भाग को अपने अधिकारियों के रिहायशी प्रयोजन के लिए अपने कब्ज़े में ले लिया था क्योंकि उन्हें डर था कि महल खाली होने पर विजयचन्द्र कहीं बेदखल न हो जाए. नरसिंहगढ़ से मेरी वापसी पर इन्होंने विजयचन्द्र को महल से हटा दिया और मुझे इसमें रहने की अनुमति दे दी गी. परिसर के मैदान में आदिवासियों ने जो डेरा डाल रखा था उन्हें पुलिसकर्मी आधी रात को जब वे सो रहे होते, चैकिंग के नाम पर जबरन बलपूर्वक जगाते थी और न केवल उनके सामान को अस्तव्यस्त कर देते थे बल्कि कभी कभी उन्हें तोड़ कर नष्ट भी कर दिया जाता. इसका एक स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि आदिवासी समुदाय पूरे पुलिस प्रशासन से नफ़रत करने लगा और उसके भीतर विद्वेष की भावना फैलने लगी. इस प्रकार की अनावश्यक और अप्रिय घटनाओं के कारण आये दिन पुलिस प्रशसन और आदिवासियों के मध्य विवाद होने लगे. आदिवासी समुदाय अब पुराने महल की वापसी की मांग अपनी पूरी क्षमता से करने लगा. यह समुदाय चाहता था कि उनकी नई महारानी पुराने महल में ही रहें क्योंकि यही महल पुरानी परम्पराओं के अनुरूप बनवाया गया था. एक शाम इन्हीं बातों को लेकर्फिर विवाद बढ़ गया. पुलिस ने जहां लाठीचार्ज कर दिया तो आदिवासियों ने तीर चलाने शुरू कर दिये. पुलिस लाठीचार्ज से जहां कई आदिवासियों को चोटें आईं वहीं आदिवासियों के तीर से एक पुलिसकर्मी घायल हो गया. इस घटना के बाद प्रशासन तन्त्र और पुलिस की यन्त्रणा से बचने के लिए आदिवासियों ने नए महल की शरण ली. इस घटना से बौखलाई पुलिस ने आंसूगैस के कई हथगोले हमारे नए महल की ओर फैंके. मुझे टेलीफ़ोन पर डराया गया कि पुलिस गोली भी चल सकती है. मैणे उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से समझाने की कोशिश की कि किसी व्यक्ति के निजी परिसर में अन्य की दखलन्दाज़ी कानूनी विवाद का खतरा उत्पन्न कर सकती है तथा यह भी कि इस तरह की गतिविधियां उन्होंने पश्चिम के देशों से सीखी हैं. निश्चय ही भारतीय पुलिस को जनता के द्वारा किसी भी कार्य को अच्छा या बुरा कर देने की असीम क्षमता का ज्ञान नहीं है. सरकारी अधिकारी इस समय यह अनुभव नहीं कर सके कि यदि कांग्रेस पार्टी अगले चुनाव में असफल हो जाती है तब क्या आने वाला भविष्य का प्रशासन इन लोगों द्वारा वर्तमान में की जा रही गतिविधियों को सम्मान दे सकेगा? इसके कुछ समय के बाद ही दूसरे दिन पुलिस का एक महानिरीक्षक जगदलपुर से आया और मेरी सहायता से इन आदिवासियों से सम्पर्क कर पाने में सफल हो गया. समुदाय के ये लोग इस पुलिस अधिकारी के प्रति बहुत ही विनम्र तथा शालीन थे और उसके ही अधीन पुलिसकर्मियों द्वारा बरती गई बर्बरता तथा अत्याचारों की चर्चा तक उस से नहीं की. पुलिस और प्रशासन ने इस दौरान अपना शक्ति प्रदर्शन कर महल के भीतर खाने-पीने और पानी-बिजली की सप्लाई रोक कर महल के भीतर रह रहे लोगों के जीवन को पंगु बना दिया था. महल परिसर में स्थित जलाशयों को खाली करा लिया गया था तथा परिसर में बाहर से आने वाली खाद्य सामग्री और अन्य पदार्थों को प्रतिबन्धित कर दिया गया था. गोल बाज़ार का एक व्यापारी देवेन्द्र जैन जो नियमित उपभोग सामग्री की आपूर्ति करता था, के एक कर्मचारी को पुलिसकर्मी कई घन्टॊं तक प्रताड़ित करते रहे. फिर भी आदिवासियों ने जब सिद्धान्तों की कीमत पर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने से इन्कार कर दिया तो पुलिस उन्हें धोखे से गिरफ़्तार करने लगी. इस पर समाचारपत्रों ने बड़ा बावेला मचाया था कि बस्तर अब नागालैण्ड बन गया है. मैं उनसे इस सन्दर्भ में हृदय से असहमत नहीं हूं क्योंकि इसके पूर्व दन्तेवाड़ा में जो कुछ भी हुआ था इन समाचार पत्रों ने उस पर कुछ नहीं लिखा था. जबकि मानवीय पहलू से इसकी बड़ी ज़रूरत थी. सच पूछा जाए तो प्रशासन भी ऐसे समाचारों को प्रसारित करने की स्वीकृति देकर प्रसन्नता का अनुभव करता है जिसे समाचारपत्र अपने हित साधन के लिए कुछ भी लिख देते हैं. एक समाचार पत्र ब्लिट्ज़ ने एक समाचार बस्तर के सन्दर्भ में प्रकाशित किया जिसके अनुसार मेरे पिता ने नेहरु को पत्र लिख कर बताया था कि मेरी सगी बहन से मेरा अवैध सम्बन्ध था.

(जारी)

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

vakai is kitab ke maadhyam se itihas ke kai panne naye nazariye se khulte hain,
shukriya aapka ise yaha padhwane ke liye,