Sunday, April 25, 2010

मैं तुम्हें एक अनोखे पुस्तकालय में बदल देना चाहता हूँ




सीरिया के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवियों में गिने जाने वाले महान अरबी कवि निज़ार कब्बानी (1923-1998) की कुछ कविताओं के अनुवाद आप पहले भी पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत है उनकी एक और कविता :


निज़ार कब्बानी की कविता
कुछ अलग शब्दों में
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)




मैं तुम्हारे बारे में कुछ अलग शब्दों में लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे अकेले के लिए ईजाद करना चाहता हूँ एक भाषा
जिसमें समा सके तुम्हारी देह
और जिससे मापा जा सके मेरा प्यार ।

मैं शब्दकोशों से बाहर की यात्रायें करना चाहता हूँ
मैं छोड़ देना चाहता हूँ होठों को
थक गया हूँ अपने मुख से
कोई अलग - सी चीज चाहता हूँ
जिससे बदल सके
चेरी का एक वृक्ष या माचिस की एक डिबिया।
मैं चाहता हूँ एक ऐसा मुख
जिससे निकलें शब्द ठीक वैसे ही
जैसे समुद्र से निकलती हैं जलपरियाँ
जैसे जादूगर के हैट से उछल कर निकलते हैं सफेद चूजे।

ले जाओ सारी किताबें
जिन्हें मैंने बचपन में पढ़ा था
ले जाओ मेरे स्कूली नोटबुक्स
ले जाओ चाक
कलमें
और ब्लैकबोर्ड्स
लेकिन मुझे सिखा दो एक नया शब्द
जिसे मैं अपने प्रियतम के कानों में पहना सकूँ
इयरिंग्स की तरह।

मुझे चाहिए नई उंगलियाँ
जिनसे मैं लिख सकूँ दूसरी तरह
लिखूँ इतना ऊँचा जैसे होते हैं जहाजों के मस्तूल
लिखूँ इतना ऊँचा जैसी होती है जिराफ़ की ग्रीवा
और मैं अपने प्रियतम के लिए सिल सकूँ
कविता की एक पोशाक।

मैं तुम्हें एक अनोखे पुस्तकालय में बदल देना चाहता हूँ
जिसमें मुझे चाहिए :
बारिश की लय
सितारों की धूल
स्लेटी बादलों की उदासी
और शरद ऋतु के चक्के तले पिसती
विलो की गिरती हुई पत्तियों का संताप।


2 comments:

दिलीप said...

bahut hi achcha prayog kavita ke sath...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

विवेक. said...

बहुत शानदार है.. बहुत बढ़िया... नाज़िम हिकमत की लय पकड़ती सी. खास बात है कि अनुवाद भी उतना ही लयात्मक है. शानदार..