Tuesday, April 27, 2010

ओ जन्नत के बिछावनहार

यह पीली टैक्सी नाम का एक गाना है जिसे बॉब डिलान समेत तमाम कलाकारों ने अलग-अलग काल में गाया है। इसमें समकालीन भारतीय विकास का अक्स झिलमिलाता है इसलिए यहां आपकी नजर पेश किया जा रहा है।

उनने बिछाई जन्नत और एक पार्किंग की आबाद
एक गुलाबी होटल, एक बुटिक- झूमते नाइट क्लब के साथ
हमेशा ऐसे नहीं होता रहेगा यही
नहीं जानते क्या?
जो था, उसे जान पाते हैं आप खो जाने के बाद
बिछाई उनने जन्नत और एक पार्किंग की आबाद।

ले गए वे पेड़ सारे, पेड़ वाले अजायबघर
वसूलने लगे फी आदमी डेढ़ डालर
बस, उन्हें ताकने के लिए
लगता नही कि चल पाएगा ऐसा सदा क्योंकि
जो था, उसे जान पाते हैं हम खो जाने के बाद
उनने बिछाई जन्नत और एक पार्किंग की आबाद।

ऐ विकास, मुनाफेलाल अब हटाओ अपना डीडीटी
भले रहें मेरे अमरूदों पर दाग लेकिन
कृपा करो, छोड़ दो मेरी चिड़ियां और मधुमक्खियां
नहीं चलेगा ऐसा हमेशा क्योंकि
गोया कि तुम नहीं जानते?
क्या था, उसे जान पाते हैं हम खो जाने के बाद
उनने बिछाई जन्नत और एक पार्किंग की आबाद।

सुना मैने दरवाजे का ढहना कल रात
एक बड़ी पीली टैक्सी उठा ले गई बाबूजी को
ऐसे ही नहीं चलेगा यह हमेशा क्योंकि
तुम इतना भी नहीं जानते क्या?
जो था, उसे जाना मैने कल खोने के बाद
उन्होंने बिछाई जन्नत और एक पार्किंग की आबाद।

बताओ लाला गांधीगीरी या इन्किलास जिन्नाबाद
क्या करूं आज की रात।
(शब्द हमारे जोर भी हमारा)

6 comments:

Ashok Pande said...

...I don't wanna give it
Why you wanna give it
Why you wanna givin it all away
Hey, hey, hey
Now you wanna give it
I should wanna give it
Cuz you're givin it all away, no no ...

Paved paradise, and put up a parking lot ...

गाना लगाऊं साहब?

Ashok Pande said...

लगा दिया भाई गाना भी. और हां अच्छा अनुवाद किया है. बहुत अच्छा!

Unknown said...

जे हुई ना बात। असोक पाईन्दाबाद

अजेय said...

अच्छा गीत . अपने यहाँ भी कम गम्भीर कविता नही लिखी गई....लेकिन शायद ही कोई गाई गई....और इस तरह मशहूर हुई. हमारे सिस्टम मे कोई गदबडी है या कि हमारा श्रोता ही पका नही अभी तक.....कि रीति काल से ले कर आज तक होंठ रसीले ही गुनगुनाना चहता रहा है ?
क्या हम केरेबियन और अफ्रीकन संगीत तक भी नही पहुँच सके? लानत है.

Unknown said...

भरमार है ऐसे गीतों की अजेय भाई। भरमार। मिसाल के दौरान पर आप दिल्ली जाएं। वहां आईबीएन-7 के दफ्तर में पंकज श्रीवास्तव से मिले और प्रार्थना कर-छापक छैल छिउलिया हलत वन गहबर न हो- सुनें। बानी की दिक्कत होगी तो भाव वे बता देंगे। अद्भुत कविता है। आपकी भी बोली में जरूर बीसियों ऐसे गीत होंगे।

अजेय said...

अनिल जी आप सही कह रह हैं. सच्मुच भरमार है ऐसे गीतों की हमारे यहाँ. लेकिन मुख्य धारा मे वे गीत नही ना चलते... जैसे उधर बोब मार्ले का बफेल्लो सोल्जर, पॉल साईमन का ग्रेस्लेंड , ट्रेसी चप्मन का फास्ट कार्स, माईकल जेक्सन और लिओनेल रिची का वी आर द वर्ल्ड, अर्थ सोंग ..... काल जयी हो जाते हैं. यहाँ क्यों नहीं ? आम आदमी की ज़ुबान पर. चे गुएरा का फोटू टीनेजर टीशर्ट पर छप जाता है. .... हमारे यहाँ भगत सिंघ या सुभाष क्यों नहीं?

यह सच मुच शर्मिन्दा होने की बात है. और हमारी बोलियो मे तो भाई साब,क्या बताऊँ बड़े दकियानूसी गीत हैं. यहाँ तो प्रेम कविता लिखने वाला बड़ा मॉडर्न और प्रगतिशील माना जाता है. ...