Monday, May 10, 2010
तुम मुझे क्षमा करो
हिन्दी और मैथिली में समान अधिकार के साथ लिख चुके राजकमल चौधरी (१९२९-१९६७) के गद्य को विशिष्ट पहचान हासिल है. आज पढ़िये मछली मरी हुई और देहगाथा जैसे उपन्यासों के लिए विख्यात इस बड़े कवि-उपन्यासकार-कथाकार की एक कविता:
तुम मुझे क्षमा करो
बहुत अंधी थीं मेरी प्रार्थनाएँ.
मुस्कुराहटें मेरी विवश
किसी भी चंद्रमा के चतुर्दिक
उगा नहीं पाई आकाश-गंगा
लगातार फूल-
चंद्रमुखी!
बहुत अंधी थीं मेरी प्रार्थनाएँ.
मुस्कुराहटें मेरी विकल
नहीं कर पाई तय वे पद-चिन्ह.
मेरे प्रति तुम्हारी राग-अस्थिरता,
अपराध-आकांक्षा ने
विस्मय ने-जिन्हें,
काल के सीमाहीन मरुथल पर
सजाया था अकारण, उस दिन
अनाधार.
मेरी प्रार्थनाएँ तुम्हारे लिए
नहीं बन सकीं
गान,
मुझे क्षमा करो.
मैं एक सच्चाई थी
तुमने कभी मुझको अपने पास नहीं बुलाया.
उम्र की मखमली कालीनों पर हम साथ नहीं चले
हमने पाँवों से बहारों के कभी फूल नहीं कुचले
तुम रेगिस्तानों में भटकते रहे
उगाते रहे फफोले
मैं नदी डरती रही हर रात!
तुमने कभी मुझे कोई गीत गाने को नहीं कहा.
वक़्त के सरगम पर हमने नए राग नहीं बोए-काटे
गीत से जीवन के सूखे हुए सरोवर नहीं पाटे
हमारी आवाज़ से चमन तो क्या
काँपी नहीं वह डाल भी, जिस पर बैठे थे कभी!
तुमने ख़ामोशी को इर्द-गिर्द लपेट लिया
मैं लिपटी हुई सोई रही.
तुमने कभी मुझको अपने पास नहीं बुलाया
क्योंकि, मैं हरदम तुम्हारे साथ थी,
तुमने कभी मुझे कोई गीत गाने को नहीं कहा
क्योंकि हमारी ज़िन्दगी से बेहतर कोई संगीत न था,
(क्या है, जो हम यह संगीत कभी सुन न सके!)
मैं तुम्हारा कोई सपना नहीं थी, सच्चाई थी!
Labels:
राजकमल चौधरी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
अद्भुत अशोक भाई…कितनी प्रवाहमान भाषा…कितनी सघन कविताई…कितना ही अद्भुत भाव
आभार इतनी अच्छी कविता पढवाने का।
वाकई अद्भुत कविता है। पढ़वाने का धन्यवाद।
राजकमल जी तो महान रचनाकार थे, धन्यवाद् उनकी रचना पढवाने के लिए!
क्या है, जो हम यह संगीत कभी सुन न सके!
...वाह!
अच्छी कविता पढ़ाने के लिए आभार.
waah!
sundar....
kunwar ji,
"क्या है, जो हम यह संगीत कभी सुन न सके!"
और क्यूँ है????
इस शानदार रचना को पढवाने का आभार।
--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
Post a Comment