हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताओं पर एक पोस्ट दो एक साल पहले कबाड़ख़ाने पर लगाई गई थी. 'एक बुरूँश कहीं खिलता है' और 'भूमिकाएं ख़त्म नहीं होतीं' उनके दो कविता संग्रहों के नाम हैं. प्रसिद्धि और साहित्य की उठापटक से दूर रहने वाले हरीशचन्द्र पाण्डे जी लगातार अच्छी कविताएं लिखते रहे हैं. आज उनकी एक कविता प्रस्तुत है:
एक सिरफिरे बूढ़े का बयान
उसने कहा-
जाऊंगा
इस उम्र में भी जाऊंगा सिनेमा
सीटी बजाऊंगा गानों पर उछालूंगा पैसा
'बिग बाज़ार' जाऊंगा माउन्ट आबू जांऊंगा
नैनीताल जाऊंगा
जब तक सामर्थ्य है
देखूंगा दुनिया की सारी चहल-पहल
इस उम्र में जब ज़्यादा ही भजने लगते हैं लोग ईश्वर को
बार-बार जाते हैं मन्दिर मस्जिद गिरजे
जाऊंगा... मैं जाऊंगा... ज़रूर जाऊंगा
पूजा अर्चना के लिए नहीं
जाऊंगा इसलिए कि देखूंगा
कैसे बनाए गए हैं ये गर्भगृह
कैसे ढले हैं कंगूरे, मीनारें और कलश
और ये मकबरें
परलोक जाने के पहले ज़रूर देखूंगा एक बार
उनकी भय बनावटें
वहाँ कहाँ दिखेंगे
मनुष्य के श्रम से बने
ऐसे स्थापत्य...
(चित्र: पाब्लो पिकासो की पेन्टिंग ओल्ड गिटारिस्ट)
6 comments:
बहुत बढ़िया रचना ....
परशुराम जयंती पर हार्दिक शुभकामनाये ...
बुडा व्यक्ती जो गिटार बजा रहा है ...
शायद वो जीवन का सन्गीत है.....उस्के विचार है....
और बाकी सब व्रुद्ध और जर्जर अवस्था है/वास्तविक्ता है
फ़िर भी नीले रन्ग के इत्ने भारी उप्योग के कारन जो अवसाद/अलगाव/खिन्न्ता मेह्सूस हो रही है..वो मुज़े लगा की कविता का tone कतई नही है !!
picture ---कविता वाली पुरी बात बोल रही है ..मगर रन्ग ....????!!!!
अशोक भई और पिकासो अन्कल गुस्ताखी माफ़ करे .
मुझे तो कविता और चित्र दोनों ही पसंद आए।
बढिया लगा।
'परलोक जाने के पहले ज़रूर देखूंगा एक बार
उनकी भय बनावटें
वहाँ कहाँ दिखेंगे
मनुष्य के श्रम से बने
ऐसे स्थापत्य..'.
- सुन्दर
बहुत शानदार कथ्य है कविता का। लेमैन हूं भाई तारीफ के लिए अल्फाज नहीं मिल रहे। जब तक जिंदगी रहे धड़कन बाकी रहे जिंदगी के ताप को महसूस कीजिए। फिजूल में अल्ला मियां को अलला कर बुलाने से क्या फायदा।
वहाँ कहाँ दिखेंगे
मनुष्य के श्रम से बने
ऐसे स्थापत्य...
...वाह! क्या बात है! इस कविया को पढकर ऐसा लगता है कि कुछ सांसें बढ़ गयीं अपनी भी.
Post a Comment