मुझे पता है अब लीपापोती का लम्बा सिलसिला चल निकलेगा और पूरे मसले को नित नए नए आयाम दिए जाएंगे - बड़े बड़े सूरमा तमाम तरह के विमर्शों में अपनी खोपड़ी घुसाए मिलेंगे और सब कुछ वैसे का वैसा हो जाएगा.
पता नहीं हिन्दी का साहित्य कब तक मतिभ्रष्ट अय्याशों के बयानों पर स्यापा करता रहेगा. म. गां. अं हि. वि. वि. के कुलपति राय साहब को मैं नहीं जानता, जानना भी नहीं चाहता. इन्टरव्यू के नाम पर जितना असंवेदनशील और घनघोर निन्दनीय बयान नया ज्ञानोदय में इन साहब के नाम से छापा गया है, उस पर कबाड़ख़ाना दोनों के प्रति अपनी आपत्ति दर्ज़ करता है.
मुझे उम्मीद है साहित्यकारों की नई पीढ़ी सामने आएगी और इस तरह के बड़बोले, दबंग और गैरज़िम्मेदार लोगों से रेवड़ियां लूटने की फ़िराक में लगे रहने के बजाय हमारी महान भाषा की मर्यादा को बचाए रखने में नए सिरे से सन्न्द्ध होगी.
9 comments:
उम्मीद ही कर सकते हैं और ब्लॉग जगत मे भी जो "साहित्यकार" बने हैं और शब्दों को हेर फेर कर के समझा रहे हैं कि किस बात का क्या मतलब हैं वो सब केवल और केवल वर्धा विश्विद्यालय मे प्रायोजित कार्यशाला के फ्री रेल टिकेट के लिये कर रहे हैं । कुछ समय इंतज़ार करे कुछ ब्लॉगर जो हिंदी ब्लोगिंग मे साहित्यकार बनगए हैं इन्ही कि जय जय कार करते नज़र आयेगे जबकि ऐसी किसी भी जगह जाने से पहले हज़ार बार सोचना चाहिये । पर होगा नहीं फ्री का किराया और खाना सब से जरुरी हैं और जरुरी हैं अपनी अपनी किताबे ग्रांट के जरिये छापना .
"मुझे उम्मीद है साहित्यकारों की नई पीढ़ी सामने आएगी और इस तरह के बड़बोले, दबंग और गैरज़िम्मेदार लोगों से रेवड़ियां लूटने की फ़िराक में लगे रहने के बजाय हमारी महान भाषा की मर्यादा को बचाए रखने में नए सिरे से सन्न्द्ध होगी."
आमीन.
ओह !
* कहि न जाय का कहिए!
Literature is a search for truth. It presents experiential reality. I do not see any need for sermonizing, as perhaps has been done by the gentleman(from what I could gather from newspaper reports about that interview). I think many of us still suffer from a feudal mindset and Victorian morality. Such statements should be condemned in no uncertain terms.
का है कि आदमी कभी कभी बौरा जाता है सो हो सकता है वो बौरा गए हों। ऐसा भी हो सकता है कि उन्होंने भांग की गोली दबा रखी हो...... फिर भी नारी जगत का इतना अपमान कतई उचित नहीं।
आपका आक्रोश जायज़ मगर एकांगी है ! मुझ भूखे पाठक को 'आदरणीय जी ' के शिष्यों का कहा भी तो बताओ , ये भी तो कहो कि उनके 'ग्रांट-अपेक्षी ' कवि क्या कह रहे हैं और इलाहाबाद -मीट कब है , कब है ये ब्लौगर मीट????????
bade-bade isi leepapoti men lage hain. Vibhuti ke sath aur bhi bahut se nange ho rahe hain ab
पता नहिं कभी कभी सभ्य कहे जाने वाले लोगों का मानसिक पतन कैसे हो जाता है।
कदाचित अभिमान का नाग डस जाता है।
उम्मीद है साहित्यकारों की नई पीढ़ी सामने आएगी और इस तरह के बड़बोले, दबंग और गैरज़िम्मेदार लोगों से रेवड़ियां लूटने की फ़िराक में लगे रहने के बजाय हमारी महान भाषा की मर्यादा को बचाए रखने में नए सिरे से सन्न्द्ध होगी.
.......... आमीन!!!! (लवली से क्षमा याचना सहित कि और्त कुछ सूझा ही नहीं)
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