Thursday, September 30, 2010

महमूद दरवेश से डालिया कार्पेल की बातचीत - 3

एक "विनम्र कवि" की वापसी -3


* तो आप दोबारा इज़राइल के हाथों में खेल रहे हैं जिसे इस स्थिति से भरपूर फ़ायदा मिल रहा है.

"पूरे समय इज़राइल यह दावा करता रहा कि बात करने वाला कोई है ही नहीं, तब भी जब बात करने वाले मौजूद थे. अब वे कहते हैं कि महमूद अब्बास से बात करना सम्भव नहीं जबकि अब्बास तब भी था जब हमास ने चुनाव नहीं जीता था. अब्बास क्या कर सकता है अगर एक भी चौकी हटाई नहीं गई है? यही इज़राइली नीति है जो फ़िलिस्तीनी अतिवाद और हिंसा को ऊर्जा देती है. शान्ति के बदले इज़राइल कुछ नहीं देना चाहता. वे १९६७ की सीमाओं से हटने को तैयार नहीं हैं, वे लौटने के अधिकार या रिहाइशी इलाक़ों को ख़ाली कराए जाने के बारे में बात करने को तैयार नहीं हैं, येरूशलम के बारे में तो क़तई नहीं - तो बात करने ओ बचता ही क्या है? हम एक डैडलॉक की स्थिति में हैं. जब तक इज़राइल इतिहास और गाथा में फ़र्क़ स्वीकार करने पर सहमत नहीं होता, मुझे इस अन्धेरी सुरंग का अन्त नज़र नहीं आता.

"आज अरब राष्ट्र इज़राइल को मान्यता देने को तैयार हैं और इज़राइल से भीख मांग रहे हैं कि उसने अरब शान्ति प्रयासों को स्वीकार कर लेना चाहिए, जिसके तहत इज़राइल को सम्पूर्ण तरीक़े से मान्यता देने और सम्बन्धों के पूर्ण सामान्यीकरण के साथ साथ १९६७ की सीमाओं पर वापस जाने और बदले में एक फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना की बात की गई है. हम हमेशा कहा जाता रहा है कि फ़िलिस्तीन किसी भी मौक़े का फ़ायदा उठाने का मौक़ा नहीं चूकता. तो इज़राइल अरब संसार के नकारवाद की नकल क्यों कर रहा है?'

* क्या आप समझते हैं कि आप अपने जीवन में दोनों देशों के बीच किसी तरह का समझौता देख सकेंगे?

"मैं उदास नहीं होता. मैं धैर्यवान हूं और इज़रालियों की चेतना में एक सघन क्रान्ति का इन्तज़ार कर रहा हूं. अरब संसार नाभिकीय हथियारों से मज़बूत एक इज़राल को स्वीकार करने पर सहमत है - उसे केवल इतना करना है कि अपने क़िले के दरवाज़े खोल दे और शान्ति क़ायम करे. पैग़म्बरों और रैचेल के मक़बरे के बारे में बात की जानी बन्द होना चाहिये. यह इक्कीसवीं सदी है - आप देखिये कि दुनिया में क्या हो रहा है. सब कुछ बदल चुका है, सिवाय इज़राइली स्थित से जो, जैसा मैंने कहा इतिहास को गाथा से जोड़ दिया करती है.

* धरती और मृत्यु के बीच सम्बन्ध को दोनों पक्षों द्वारा तक़रीबन स्वीकार कर लिया गया है.

" मैंने कहा था कि इज़राइल के राजनैतिज्ञों से एक सांस्कृतिक क्रान्ति की आवश्यकता है ताकि इस बात को समझा जा सके कि इज़राइल की युवा पीढ़ी को अगले युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा जाना असम्भव है. वैश्वीकरण युवा पीढ़ी को प्रभावित कर रहा है; वे यात्राएं करना चाहते हैं और सेना से अलग एक जीवन का निर्माण करना चाहते हैं. आप मुझसे यह उम्मीद नहीं करते कि मैं दोनों पक्षों के इस अतर्द्वंद्व की हताशा की तुलना करूं. अगर इज़राइलियों में उदासी का अस्तित्व है तो यह एक अच्छा संकेत है. हो सकता है कि इस हताशा से नेतृत्व पर जनता का दबाव बने कि उसे एक नई स्थिति का निर्माण करना पड़ जाए.

क्या आप एक जनरल और एक कवि के बीच का फ़र्क़ समझते हैं? जनरल युद्ध के मैदान में मारे गए दुश्मनों की संख्या गिना करता है. जबकि कवि यह गिनता है कि युद्ध में कितने जीवित लोग मारे गए. मृतकों के बीच कोई शत्रुता नहीं होती. दुश्मन सिर्फ़ एक ही होता है - मृत्यु. यह उपमा बिल्कुल साफ़ है. दोनों पक्षों के मृतक उसके बाद दुश्मन नहीं रह जाते."

(जारी)

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