ग्यारह सितम्बर के बहाने आज एक रीपोस्ट.
नोबेल सम्मान प्राप्त पोलिश कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की एक कविता:
ग्यारह सितंबर का एक फोटोग्राफ़
वे कूद रहे थे जलती इमारतों से
एक
दो
कुछेक और
- कुछ ऊपर थे, कुछ नीचे
एक फोटोग्राफ़र ने उन्हें दर्ज़ कर लिया है
जब वे जीवित थे
धरती के ऊपर
धरती तक पहुँचते हुए -
हर आदमी साबुत
हर एक का अपना चेहरा
और हर एक का भली तरह छिपा हुआ रक्त
- अभी वक़्त है उनके बालों के बेतरतीब हो जाने में
अभी वक़्त है उनकी जेबों से चाभियाँ और रेजगारी निकल कर गिरने में
वे अब भी उपस्थित हैं हवा की वास्तविकता के भीतर
उन जगहों पर जहाँ अभी-अभी
उनके लिए जगह का निर्माण हुआ है
उनके वास्ते मैं सिर्फ़ दो काम कर सकती हूँ -
उनकी उड़ान का वर्णन करूं
और अपनी ओर से न जोड़ूं कोई अन्तिम शब्द!
(साभार: 'पहल'- ७५)
3 comments:
मार्मिक पंक्तियाँ। अब भला कुछ और जोड़ने को बचा क्या है?
यह एक दर्दनाक याद है।
दर्दनाक चित्र।
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