Saturday, September 11, 2010

और अपनी ओर से न जोड़ूं कोई अन्तिम शब्द!

ग्यारह सितम्बर के बहाने आज एक रीपोस्ट.




नोबेल सम्मान प्राप्त पोलिश कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की एक कविता:

ग्यारह सितंबर का एक फोटोग्राफ़

वे कूद रहे थे जलती इमारतों से
एक
दो
कुछेक और
- कुछ ऊपर थे, कुछ नीचे
एक फोटोग्राफ़र ने उन्हें दर्ज़ कर लिया है
जब वे जीवित थे
धरती के ऊपर
धरती तक पहुँचते हुए -
हर आदमी साबुत
हर एक का अपना चेहरा

और हर एक का भली तरह छिपा हुआ रक्त
- अभी वक़्त है उनके बालों के बेतरतीब हो जाने में
अभी वक़्त है उनकी जेबों से चाभियाँ और रेजगारी निकल कर गिरने में
वे अब भी उपस्थित हैं हवा की वास्तविकता के भीतर
उन जगहों पर जहाँ अभी-अभी
उनके लिए जगह का निर्माण हुआ है

उनके वास्ते मैं सिर्फ़ दो काम कर सकती हूँ -
उनकी उड़ान का वर्णन करूं
और अपनी ओर से न जोड़ूं कोई अन्तिम शब्द!

(साभार: 'पहल'- ७५)

3 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मार्मिक पंक्तियाँ। अब भला कुछ और जोड़ने को बचा क्या है?

राजेश उत्‍साही said...

यह एक दर्दनाक याद है।

प्रवीण पाण्डेय said...

दर्दनाक चित्र।