हेमन्त कुकरेती कबाड़ख़ाने के लिए नए नहीं हैं. उनकी कविताओं पर एक पोस्ट यहां पहले भी लगाई जा चुकी है. आज पढ़िये उनकी एक और कविता:
कल ही की बात
वह घबराई हुई थी
मैंने उसे डरने से नहीं रोका
कुछ ही देर हुई थी
मुझे उसके साहसी होने का पता चला
मैं पड़ रहा था अकेला
वह मुझे समेट रही थी
मुझे लग रहा था मैं बच जाऊंगा
इस तरह विलीन होने से
किसी तर्क से छूट जाते हैं सब
मेरे साथ यह भी नहीं हुआ
मैं उसके घबराने से डर रहा था
अभी कल ही की तो बात है.
1 comment:
वह घबराई हुई थी
मैंने उसे डरने से नहीं रोका
Ye panktiyaan kaafi kuch kehti hain !
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