Tuesday, January 18, 2011

कल्चर शॉक वाया टोक्यो फ्रॉम कावासाकी


अपना देस फिर अपना होता है ,

अपनी बोली-बानी,भेस,पुरवा-बसन्ती ,

मालपुवा, चिवड़ा, भाजी, दिवाली, घरवाली , तरकारी,

कपास की कमीज़ अंगरेजी काट की

और क्या बात है साहब कुतुब की लाट की

अपना देस फिर अपना होता है

लेकिन क्यों नहीं होतीं सब सड़कें धुली-पुछी सी ,

थूकते क्यों है लोग इतना के अरब सागर में पानी जितना ,

लाइन में खड़े होना या के फिर साइकिल ही चलाना

या पैदल ही चल लेने में आबरू क्यों डाउन जाती है

और वो झंडु बाम वाली पतुरिया काहे इतना कमर हिलाती है

और क्यों कभी संझा के झुटपुटे में झोला उठाए दफ़्तर छोड़ने से पहले ६० डिग्री नमकर

क्यों नहीं कहते कबहुँ, कभी, किसी भी रोज़ मेरे देसवासी भी

---– ओस्कारे समादेश्ता.... ओस्कारे समा.....यानि आपने आज जो मेहनत की बाउजी उसका धन्यवाद ।

बहरहाल अपना देस फिर अपना होता है......


13 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने देश की बयार और सोंधापन।

Naveen Joshi said...

waah, bahut sunder.

Naveen Joshi said...

waah, bahut sunder.

DHARMENDRA LAKHWANI said...

bahut badiya our bilkul sahee.

Ashok Pande said...

Good to see you there!

What shocked me was Munish Bhai trying his hand at free verse!

:)

Cheers! Hope you are having a nice time there Bro!

Neeraj said...

India means homesickness

नीरज गोस्वामी said...

सच कहा आपने...इस दिलकश रचना के लिए बधाई....
नीरज

मुनीश ( munish ) said...

Shukria dosto.

पारुल "पुखराज" said...

थूकते क्यों है लोग इतना के अरब सागर में पानी जितना --सही कही :)

Pratibha Katiyar said...

bahut khoob!

Pratibha Katiyar said...

bahut khoob!

iqbal abhimanyu said...

मुनीश भाई आपकी बेलाग टिप्पणियों का तो पहले से ही कायल था, अब मुरीद हो गया हूँ. शुक्रिया !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह. पर मैं तो यहां आज ही आया बरास्‍ता फ़ेसबुक. अच्‍छा लगा :-)