Tuesday, January 25, 2011

पांच उसाँसे रेगिस्तानों की

भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित भीमसेन जोशी को श्रद्धांजलिस्वरूप आज वीरेन डंगवाल के नवीनतम कविता-संग्रह ’स्याहीताल’ से प्रस्तुत है एक कविता

भीमसेन जोशी

मैं चुटकी में भर के उठाता हूँ
पानी की एक ओर-छोर डोर नदी से
आहिस्ता
अपने सर के भी ऊपर तक

आलिंगन में भर लेता हूँ मैं
सबसे नटखट समुद्री हवा को

अभी अभी चूम ली हैं मैंने
पांच उसाँसे रेगिस्तानों की
गुजिश्ता रातों की सत्रह करवटें

ये लो
यह उड़ चली 120 की रफ़्तार से
इतनी प्राचीन मोटरकार

यह सब रियाज़ के दम पर सखी
या सिर्फ रियाज़ के दम पर नहीं!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

रियाज़ और प्रतिभा, शेष कुछ भी नहीं।

मुनीश ( munish ) said...

सिर्फ रियाज़ के दम पर नहीं ! Itz God's grace and HE is partial and beyond explanations.