आजकल शादी - ब्याह का सीजन है। बीच - बीच में दावत भी हो जाती है। बड़े शहरों - महानगरों और धुर अन्चीन्हे इलाकों की शादियों की दावतों की तो खबर नहीं लेकिन जहाँ अपना कयाम - मुकाम है वहाँ की शादियों में खाना अक्सर एक जैसा ही लगता है - देखने में भी और खाने में भी। ऐसे में हिन्दी कविता की समृद्ध परंपरा के सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्यों में से एक 'पद्मावत' ( मलिक मोहम्मद जायसी ) के 'रत्नसेन-पद्मावती-विवाह-खंड' में वर्णित शाही भोज की याद हो आती है। यह एक तरह से हमारे विलोपित होते पाकशास्त्रीय परंपरा व उत्तरोत्तर परिवर्तित स्वाद की विरासत की ऐतिहासिक यात्रा है .. आइए देखते हैं .
पाँति पाँति सब बैठे, भाँति भाँति जेवनार ।
कनक-पत्र दोनन्ह तर, कनक-पत्र पनवार ॥
पहिले भात परोसे आना । जनहुँ सुबास कपूर बसाना ॥
झालर माँडे आए पोई । देखत उजर पाग जस धोई ॥
लुचुई और सोहारी धरी । एक तौ ताती औ सुठि कोंवरी ॥
खँडरा बचका औ डुभकौरी । बरी एकोतर सौ, कोहड़ौरी ॥
पुनि सँघाने आए बसाधे । दूध दही के मुरंडा बाँधे ॥
औ छप्पन परकार जो आए । नहिं अस देख, न कबहूँ खाए ॥
पुनि जाउरि पछियाउरि आई । घिरति खाँड़ कै बनी मिठाई ॥
जेंवत अधिक सुबासित, मुँह मँह परत बिलाइ ।
सहस स्वाद सो पावै , एक कौर जो खाइ ॥
11 comments:
कवित्त में कोहड़ौरी.....वाह।
मस्त स्वादिष्ट पोस्ट ।
आज ऐसे छप्पन भोग कहाँ...। बहुतों को क्या, शायद अधिकतर लोगों को मालूम ही नहीं कि छप्पन भोग में आखिर शामिल क्या-क्या होता है...।
प्रियंका गुप्ता
वाह...अद्भुत विवरण...आज कल तो खाने में बर्बादी अधिक होती है...लोग प्लेट में जितना लेते हैं उसका आधा ही खाते हैं...माले मुफ्त दिले बेहराम को चरितार्थ होते देखना हो तो किसी भी शादी के भोज में चले जाएँ...अगर आप भी ऐसा ही करते हैं तो सुधर जाएँ..
नीरज
औ छप्पन परकार जो आए । नहिं अस देख, न कबहूँ खाए ॥
पुनि जाउरि पछियाउरि आई । घिरति खाँड़ कै बनी मिठाई ॥
ati sunder
yaden sada ke liye
खाने में हर युग में भारतीयों की कोई सानी नहीं रही ....
अवधी का एक और टुकड़ा जिसमें दावत नहीं रूटीन के खाने का बयान है। महाकवि घाघ हैं ये-
गेहूं के रोटी जड़हनी के भात,गलगल नेमुआ औ घिऊ तात।
तिरछी नजर परोसे जोय, ई सुख सरग पइठले होय।।
वाह, मुंह में पानी आ गया. सोहारी, खँडरा, डुभकौरी, बरी पढ़कर लगा कि छत्तीसगढ़ के किसी दावत का प्रसंग है.
पौष्टिक व स्वादिष्ट पोस्ट।
औ छप्पन परकार जो आए । नहिं अस देख, न कबहूँ खाए ॥
पुनि जाउरि पछियाउरि आई । घिरति खाँड़ कै बनी मिठाई ॥
बहुत सुंदर
बहुत अच्छा लगा पढ़कर
अब तक यहां नहीं आ पाई...पता नहीं कैसे...
ब्लॉग भी फॉलो कर रही हूं...
ये सब बघेलखंड के व्यंजन हैं. कोई लुचई और सोहारी का फ़र्क बताएगा?
world is eating Filth ! we should be thankful to our ancestors that they introduced us to the real delicious food .it is the food which pulls back every Indian away from homeland .
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