Wednesday, April 20, 2011

लौटूंगा उसी गुलाब तक

महमूद दरवेश की एक और कविता


अगर दोबारा शुरू करना मेरे बस में होता

अगर दोबारा शुरू करना मेरे बस में होता तो मैं छांटता वही रास्ता. चहारदीवारी पर ग़ुलाब.
मैं उन्हीं सड़कों पर चलता जो मुझे कोरदोबा पहुंचा सकती भी थीं या नहीं.
मैं अपनी छाया को टिका देता दो चट्टानों में ताकि चिड़ियां उनमें से एक टहनी पर घोंसला बना पातीं.
बादाम की ख़ुशबू के लिए मैं अपनी छाया को आज़ाद कर देता धूल के बादल में तैरने को
और थक जाता ढलानों पर. पास आओ, और सुनो
साझा करो मेरी डबलरोटी, मेरी वाइन पियो, मुझे विलो के एक थके पेड़ की तरह अकेला न छोड़ो.
मुझे वे धरतियां प्रिय हैं जिन्हें पलायन के गीतों ने रौंदा न हो या जो बनी हों
रक्त और इच्छा की वजहें.
मुझे वे स्त्रियां पसन्द हैं जिनकी गुप्त इच्छाएं घोड़ों को विवश कर देती हैं देहलियों पर अपना जीवन ख़त्म करने को.
अगर मैं लौटा, तो लौटूंगा उसी गुलाब तक और उन्हीं सीढ़ियों तक
मगर कोरदोबा कभी नहीं आऊंगा.


(कोरदोबा: आन्दालूसिया का एक महत्वपूर्ण नगर जहां ईसा से बत्तीस हज़ार वर्ष पूर्व नियान्डरथल मानव के अवशेष पाए गए थे.)

1 comment:

vandana gupta said...

सुन्दर्।