Tuesday, May 3, 2011

मुस्कुराहटें

फ़रीद खान कबाड़ख़ाने के लिए नए नहीं हैं. उनके फेसबुक अकाउंट से एक कविता साभार यहां लगा रहा हूँ.


हर कोई मुस्कुराता है
अपने अपने अर्थ के साथ।
बच्चा मुस्कुराता है,
तो लगता है, वह निर्भय है।
प्रेमिका मुस्कुराती है,
तो लगता है, उसे स्वीकार है मेरा प्रस्ताव।
दार्शनिक मुस्कुराता है,
तो लगता है, व्यंग्य कर रहा है दुनिया पर।
भूखा मुस्कुराता है,
तो लगता है, वह मुक्त हो चुका है और पाने को पड़ी है
उसके सामने पूरी दुनिया।

जब अमीर मुस्कुराता है,
तो लगता है, शासक मुस्कुरा रहा है,
कि देश की कमज़ोर नब्ज़ उसके हाथ में है,
कि जब भी उसे मज़ा लेना होगा,
दबा देगा थोड़ा सा।

3 comments:

Unknown said...

behad badiya........
ye muskurahat bahut hi gajab ki chij hai sir ji aur khatarnak bhi......

बाबुषा said...

ये तो बड़ी प्यारी कविता है ! :-)

प्रवीण पाण्डेय said...

सबका मुस्कराना अलग ही अर्थ लेकर आता है।