Sunday, May 8, 2011

पाब्लो नेरूदा की बड़ी मां

बीसवीं सदी के महानतम कवि माने जाने वाले पाब्लो नेरूदा की माता रोसा बासोआल्तो १९०४ में उन्हें जन्म देने के २ माह बाद चल बसी थीं. रेलवे में काम करने वाले उनके पिता इस घटना के कुछ ही समय बाद दक्षिणी चीले में तेमूको नाम की एक जगह जा बसे. वहां उन्होंने त्रीनीदाद कान्दीया मारवेरदे नामक स्त्री से विवाह कर लिया जिनसे नौ वर्ष पहले उनका एक पुत्र रोदोल्फ़ो जन्म ले चुका था.

जाहिर है नेरूदा की सौतेली माता (हालांकि वे इस कविता में कहते हैं ... प्यारी बड़ी मां!/ मैं सौतेली मां नहीं कह पाया कभी - ...) ने ही उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया. यह कविता नेरूदा की पद्य आत्मकथा ईस्ला नेग्रा से ली गई है -



बड़ी मां

लकड़ी के जूते पहने आती है
मेरी बड़ी मां. कल रात दक्षिणी ध्रुव से हवा चली
छत की खपरैलें टूट गईं, पुल और दीवारेंढह गए.
रात भर ग़ुर्राते रहे रात के चीते
और अब, बर्फ़ीले सूरज की सुबह वह आई है
मेरी बड़ी मां,
दोन्या त्रीनीदाद मारवेरदे,
तूफ़ानी मुल्क में सूर्य की अस्थाई ताज़गी की तरह मुलायम
ख़ुद को मिटा लेने वाला एक जर्जर दीया
जल कर
औरों को राह दिखाने वाला.

प्यारी बड़ी मां!
मैं सौतेली मां नहीं कह पाया कभी -
इस क्षण
मेरा मुंह कांपता है तुम्हें किसी परिभाषा में बांधने को
क्योंकि
मैंने बमुश्किल समझना शुरू किया था चीज़ों को
कि ग़रीब वस्त्रों में मैंने अच्छापन देखा
एक व्यावहारिक पवित्रता -
पानी और आटे का अच्छापन.
वह थीं तुम.

जीवन ने तुम्हें रोटी बना दिया था
और हम तुम पर जीवित रहते थे,
लम्बे जाड़ों से उदास जाड़ों तक
घर के भीतर रिस आया करती थीं बरसात की बूंदें
और अपनी उदारता के साथ
तुम सदा उपस्थित
गरीबी का तिक्त आटा छानती हुईं
मानो तुम
जवाहरातों से भरी एक नदी
बांटने के काम में लगी हुई हो.

ओ मां! हर क्षण क्यों नहीं
याद करता जाऊंगा तुम्हें सदा?
असम्भव है. मेरे रक्त में मारवेरदे - बांटी हुई
रोटी का तुम्हारा उपनाम
- उन दयालु हाथों का जो आटे के बोरे से
मेरे छुटपन के कपड़ों को आकार दिया करते थे
उसका, जो खाना पकाती, इस्तरी करती, कपड़े धोती.
बोती, बुख़ारों को सहलाया करती थी
और आख़िरकार जब मैं अब अपने निश्चित पैरों पर
खड़ा होने लायक हो गया
वह चली गई, सन्तुष्ट, काली,
अपने छोटे से ताबूत में, जिसमें वह बिना किसी काम के
ख़ाली रही थोड़ी देर
तेमूको की कड़ी बरसातों के नीचे.


(पहला फ़ोटो: पाब्लो नेरूदा, उनकी बड़ी मां और सौतेली बहन लॉरा, दूसरा फ़ोटो - फ़्रॉक पहने हुए शिशु नेरूदा))

5 comments:

आशुतोष कुमार said...

कंटाप अनुवाद, बधाई . शुकराना.

प्रवीण पाण्डेय said...

माँ को अनुवाद में उतार दिया है, संपूर्ण।

Pushpendra Falgun said...

utkrishta anuvaad... behatareen kavita...

बाबुषा said...

बेहतरीन !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

माँ को प्रणाम!
मातृदिवस पर बहुत सुन्दर रचना का अनुवाद किया है आपने!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
--
http://nicenice-nice.blogspot.com/2011/05/blog-post_08.html