Sunday, May 8, 2011

नक्शे पर एक नया और ख़तरनाक तत्व - प्रौढ़ता


मार्सिन स्विएतलिकी की कविताएं आप कल से पढ़ रहे हैं. इस कवि की रेन्ज और ज़ोख़िम उठाने की ताकत मुझे लगातार चकित करती रही है. प्रेम और ख़ासतौर पर पुरुष के प्रेम के साथ ऐसा क्रूर और सचमुच तटस्थ सुलूक करते हुए मैंने पहले कभी देखा हो, याद नहीं पड़ता.

लोग

वे एक दूसरे को प्यार करते हैं, और पंजीकृत हैं
उनके काग़ज़ात बिल्कुल सही हैं.
उनके पास उनकी बीमारियां हैं, वे दवाओं और साहित्य
की मदद से अपना ख्याल रखते हैं.

वे जीते हैं, और मैं कविताएं
लिखता हूं उनके बारे में
मैं उघाड़ता हूं उनके इतिहास की ईंटें और गारा
और यह, जहां तक मैं स्वीकार करूंगा, दग़ाबाज़ी नहीं है.

जिसे कोई प्रेम नहीं करता वह दग़ा नहीं देता
जिसे कोई प्रेम नहीं करता
खड़काता चलता है अपनी जेब में धरे
एक बेकाम चाभी.


वसन्त की शुरूआत

तो मैंने फिर से फ़ोन किया - बस जांचने भर को
रिसीवर उठाया गया, कहा गया - "वो यहां नहीं है."
नहीं. कुछ नहीं. कुछ भी नहीं, न्ना. कोई ख़ास बात नहीं.
सारा कुछ साफ़ है अब. वो रहा, बस यूं ही,
मैंने फ़ोन किया. बस जांचने को. तुम गढ़े हुए
एक कारण को बदल सकते हो दूसरे से. या यह भी हो सकता था
कि तुमने फ़ोन किया ही न होता. अब सब साफ़ है.

कमरे के भीतर एक चिड़िया उड़ती है - जिसे
चिड़ियों के बारे में एक किताब से फाड़ा गया है. और किताबों के आवरण
और और ज़्यादा फटे हुए. घर में पड़े हुए हैं
बहुत सारे मुखविहीन सूरजमुखी. वसन्त के
शुरूआती दिन है. बहुत शुरुआती दिन.
वह खिड़कियों से पसर रहा है मुलायम. आकाश में
महान पाखण्डी सूरज. कृपया छुएं नहीं
- हम में बिजली दौड़ रही है. बिजली के जीवित सांप.

नक्शे पर एक नया और ख़तरनाक तत्व -
प्रौढ़ता. ख़ामोशी और लिखा जाना ढेरों
प्रेम कविताओं का, सब बेकार, बहुत देर हो चुकी.
झण्डा उतार कर सम्हाला जा चुका
पुराने अख़बारों में - और छिपा हुआ किसी ताक पर.
मैं खिड़की से बाहर देखता हूं - मैं खोज रहा हूं एक जगह
जहां बो सकूं अपना गर्म वीर्य.

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बेकाम चाभी। वाह।

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अलग तरह की कविताएं हैं. सुंदर. पढ़वाने के लिए आभार.