Saturday, May 21, 2011

यान पोल्कोव्स्की के लिए - मार्सिन स्विएतलिकी की कविता


यान पोल्कोव्स्की के लिए

वक्त हुआ कार्डबोर्ड के नन्हे दरवाज़ों को बन्द किया जाए और एक खिड़की खोली जाए,
एक खिड़की खोली जाए और थोड़ी हवा को आने दिया जाए इस कमरे में.
पहले किस्मत हमेशा साथ होती थी जिस पर निर्भर रहा जा सकता था
अब वह खत्म हो चुकी. सिवा एक अपवाद के -
जब कविताएं जाती हैं और पीछे छोड़ जाती हैं अपनी दुर्गन्ध.

ग़ुलामों की कविता जीवित रहती है विचारों पर,
और विचार होते हैं रक्त का पानीदार विकल्प.
कारागार में रहते हैं नायक,
और कामगार बदसूरत होता है अलबत्ता ज़रा सा
मददगार - ग़ुलामों की कविता में.

गुलामों की कविता में पेड़ों के भीतर सलीबें
होती हैं - उनकी छाल के नीचे - कांटेदार तार की बनीं.
तो कितना आसान होता है ग़ुलाम के लिए
वर्णमाला से ईश्वर तक की विकट लम्बी
और असल में असम्भव सड़क पर चलना, वह बनी रहती है बस एक पल को
जैसे थूकना - ग़ुलामों की कविता में.

बजाए कहने के - मुझे दांतदर्द है, मैं
भूखा हूं, मैं अकेला हूं, हम दोनों, हम
चारों, हमारी पूरी गली - वे ख़ामोशी से कहते हैं: वान्डा
वासीलेव्स्का, सिप्रियन कामिल नोर्विड,
जोसेफ़ पिल्सुद्स्की, युक्रेन, लिथुआनिया,
थॉमस मान, बाइबिल, और अन्त में
यिदिश भाषा में एकाध शब्द.

अगर ड्रैगन अब भी रह रहा था इस शहर में
तो वे अपनी खुशामदों से ड्रैगन को मार डालेंगे - या सिमट
जाएंगे किसी कोने में ताकि कविताएं लिख सके-
ड्रैगन को डराने के लिए नन्ही मुठ्ठियां
(हरेक प्रेम कविता लिखी जाएगी
एक ड्रैगन वर्णमाला में ...)

मैं सीधा देखता हूं ड्रैगन की आंखों में
और अपने कन्धे उचकाता हूं. जून का महीना है. साफ़ दिख रहा है.
इस दोपहर यहां आया था एक तूफ़ान. गोधूलि उतरेगी
सबसे पहले शहर के बिल्कुल चौकोर चौक पर.

(यान पोल्कोव्स्की: मार्सिन स्विएतलिकी के समकालीन पोलिश कवि; वान्डा वासीलेव्स्का, सिप्रियन कामिल नोर्विड और जोसेफ़ पिल्सुद्स्की: क्रमशः विख्यात पोलिश साहित्यकार, कवि और सेनानायक; थॉमस मान: १९२९ के नोबेल पुरुस्कार विजेता जर्मन मूल के उपन्यासकार, सामाजिक आलोचक और निबन्धकार)

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(इस कविता का एक अगला भाग भी है जिसमें दर असल यह कविता पूरी होती है - कल पढ़िये वो वाला हिस्सा)

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