Tuesday, July 5, 2011
तुफ़ैल नियाज़ी साहब की हीर
आप इस पोस्ट को कलेक्टर्स आइटम भी कह सकते हैं. कल मैंने तुफ़ैल नियाज़ी साहब की गाई हुई हीर का ज़िक्र किया था. चार दोस्तों को फ़ोन वगैरह किये गए और बरसों से गुम हो चुकी यह रचना मुझे मेल के मार्फ़त मिल गई.
हीर-रांझा की अमर प्रेम कहानी को जिस प्रांजलता और गहराई से तुफ़ैल नियाज़ी ने गाया है वह अतुलनीय है. ठेठ क्लासिकल रागों के वैविध्य से भरी इस रचना को एक बार पूरा सुनने के बाद आप बार-बार इस तक लौटना चाहेंगे. कम-अज़-कम मेरा ऐसा मानना है. यह अलग बात है कि दोनों हिस्से क़रीब आधे-आधे घन्टे के हैं और इनका पूरा रस फ़ुरसत में ही लिया जा सकता है. डाउनलोड के लिंक भी लगा रहा हूं.
भाग एक
(डाउनलोड लिंक: http://www.divshare.com/download/15240579-d7f)
भाग दो
(डाउनलोड लिंक: http://www.divshare.com/download/15240590-944)
(चित्र: अब्दुर्रहमान चुग़ताई की पेटिंग "हीर रांझा")
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2 comments:
Ek hissa hi suna hai abhi tak...adbhut hai.
आज फुरसत में सुनी, समय खला नहीं, डूब से गये।
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