दिखावा करते हैं सारे कवि
-फ़र्नान्दो पेसोआ
दिखावा करते हैं सारे कवि
और इतना वास्तविक होता है उनका दिखावा
कि वे उस दर्द का भी दिखावा कर लेते हैं
जो उन्हें वास्तव में महसूस हो रहा होता है
और वे जो उनका लिखा पढ़ते हैं
पढ़ते हुए, पूरी तरह महसूस करते हैं
उसका वह दर्द नहीं जो दूना होता है
बल्कि उनका अपना,
जो पूरी तरह काल्पनिक,
सो इन पटरियों पर लगातार चक्कर काटती हुई
दिमाग के मनोरंजन के लिए चाबी लगी वह नन्ही रेलगाड़ी चलती जाती है
जिसे हम आदमी का दिल कहते हैं
7 comments:
खरी-खरी!
वाह असलियत बयाँ कर दी।
हम्म!
ये कवि की ही कविता है ना? (!)
is he talking about EXAGGERATION ,probably done by poets.??!!
but i have always believed that exaggeration leads to carricature.
here initially i was tinking that the poets is talking about the confusion of mind in the acceptanceof REALITY .....but finally i am confused to conclude.
बडी तीखी कविता।
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दिखावा करते हैं सारे कवि
और इतना वास्तविक होता है उनका दिखावा
कि वे उस दर्द का भी दिखावा कर लेते हैं
जो उन्हें वास्तव में महसूस हो रहा होता है
...wah kavi nahi ho sakta , kavi ke mukhaute ke andar kuch aur hota hai
अनोखा कथ्य
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