Saturday, July 9, 2011

दिखावा करते हैं सारे कवि

दिखावा करते हैं सारे कवि


-फ़र्नान्दो पेसोआ

दिखावा करते हैं सारे कवि
और इतना वास्तविक होता है उनका दिखावा
कि वे उस दर्द का भी दिखावा कर लेते हैं
जो उन्हें वास्तव में महसूस हो रहा होता है

और वे जो उनका लिखा पढ़ते हैं
पढ़ते हुए, पूरी तरह महसूस करते हैं
उसका वह दर्द नहीं जो दूना होता है
बल्कि उनका अपना,
जो पूरी तरह काल्पनिक,
सो इन पटरियों पर लगातार चक्कर काटती हुई
दिमाग के मनोरंजन के लिए चाबी लगी वह नन्ही रेलगाड़ी चलती जाती है
जिसे हम आदमी का दिल कहते हैं

7 comments:

Unknown said...

खरी-खरी!

vandana gupta said...

वाह असलियत बयाँ कर दी।

मनोज कुमार said...

हम्म!
ये कवि की ही कविता है ना? (!)

abcd said...

is he talking about EXAGGERATION ,probably done by poets.??!!

but i have always believed that exaggeration leads to carricature.

here initially i was tinking that the poets is talking about the confusion of mind in the acceptanceof REALITY .....but finally i am confused to conclude.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बडी तीखी कविता।

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रश्मि प्रभा... said...

दिखावा करते हैं सारे कवि
और इतना वास्तविक होता है उनका दिखावा
कि वे उस दर्द का भी दिखावा कर लेते हैं
जो उन्हें वास्तव में महसूस हो रहा होता है
...wah kavi nahi ho sakta , kavi ke mukhaute ke andar kuch aur hota hai

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

अनोखा कथ्य