Sunday, July 10, 2011
मैं अपनी योजना में समय को शामिल नहीं करना चाहता
"समझ सकने के लायक बनने के लिए मैंने ख़ुद को तबाह कर डाला." अपनी किताब "द बुक ऑफ़ डिस्क्वायट" में फ़र्नान्दो पेसोआ एक जगह लिखता है. आज फिर से दिन का आग़ाज़ कीजिए पेसोआ की एक और कविता से -
वर्तमान में जियो,
आप कहते हैं, वर्तमान में जियो
पर मुझे वर्तमान नहीं चाहिए
मैं वास्तविकता चाहता हूँ
मुझे अस्तित्वमान चीज़ें चाहिए
समय नहीं, जो उन्हें नापता है
क्या है वर्तमान
यह भविष्य और भूतकाल के सापेक्ष कोई चीज़ है
यह ऐसी चीज़ है
जो दूसरी चीज़ों के अस्तित्व के कारण अस्तित्व में है
मुझे केवल वास्तविकता चाहिए, समयहीनता के साथ चीज़ें
मैं अपनी योजना में समय को शामिल नहीं करना चाहता
मैं चीज़ों को समयबद्धता के साथ नहीं देखना चाहता
मैं उनके बारे में सिर्फ चीज़ों की तरह सोचना चाहता हूँ
मैं उन्हें उन्ही से अलग नहीं करना चाहता
जैसे वे वर्तमान में उपस्थित हों
मुझे तो उन्हें वास्तविक चीज़ें भी समझना चाहिए
मुझे उन्हें कुछ भी नहीं समझना चाहिए
मुझे उन्हें देखना चाहिए
बस देखना चाहिए,तब देखना चाहिए
जब तक कि मैं उनके बारे में सोच भी न सकूँ
उन्हें देखूं बिना स्थान और समय के देखूं
और जो देखने लायक है उसके अलावा सब कुछ हटा दूँ
यह है बोध का विज्ञान
जो कोई विज्ञान ही नहीं है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
भावमयी रचना....
योजनाओं में समय को आमन्त्रित न किया जाये, बड़ा ही सशक्त दर्शन।
इस्का उलट सोचा की समय भी मुऴे अप्नी योज्ना मे शामिल न करे......
तो ये तो "अमर"की परीभाशा हो गयी /
===================================
ये भी लगा की he is talking about "blank" state of mind .
=======================================
Post a Comment