Thursday, July 28, 2011

मैं हवा को नहीं जानता था

निज़ार क़ब्बानी की तीन छोटी कविताएं


जिस दिन मुझे निकाला गया

जिस दिन मुझे निकाला गया कबीले से
तुम्हारे तम्बू के दरवाज़े के बाहर
एक प्रेम-कविता और एक ग़ुलाब रखने के कारण
उस दिन से शुरू हुआ पतन का दौर
व्याकरण और वाक्य-विन्यास में ख़ासा जानकार दौर
अलबत्ता अज्ञानी और स्त्रैण
एक दौर जो अपराधी था
देश की अपनी स्मृति से सारी स्त्रियों के नाम मिटाने का.

अब भी

तुम अब भी, यात्रारत मेरी प्यारी
अब भी वही इन दस सालों बाद
धंसी हुई हो मेरी बग़ल में, किसी भाले की तरह.

मैंने हवा पर लिखा

मैंने हवा पर लिखा
अपने प्यार का नाम
उसे मैंने पानी पर लिखा.
मैं हवा को नहीं जानता था
वह ठीक से सुन नहीं पाती थी
मैं पानी को नहीं जानता था
वह नाम याद नहीं रख सकता था.

2 comments:

Dorothy said...

निज़ार क़ब्बानी जी की इतनी खूबसूरत कविताएं पढवाने के लिए आभार...
सादर,
डोरोथी.

Ashish said...

behtareen.