पंजाब का यह दर्दभरा विदागीत सुना रही हैं रेशमा. इस रचना का मूल संस्करण मुझसे कहीं खो गया है. इस वाले में आधुनिक वाद्ययन्त्रों का थोड़ा ज़्यादा ही इस्तेमाल हुआ है अलबत्ता रेशमा की गहरी, आत्मा में उतरने वाली, विकल बना देने वाली आवाज़ गीत में सन्तुलन बनाए रखती है. अगर मिल गया तो मैं आपको आज या कल बहुत बड़े गायक तुफ़ैल नियाज़ी की आवाज़ में यही गीत एकदम दूसरी ही लेकिन अधिक पारम्परिक शैली में सुनवाने का जतन करता हूं.
3 comments:
bahut shkriya...
aaj iski jarurat thi/hai.
Sundar hai.
Wo jiska aap zikr kar rahe hain..mil jaae to kya kahne.
आज बहुत जमाने बाद यह गीत सुना.आभार.
घुघूती बासूती
Post a Comment