यह कबाड़ख़ाने की दो हज़ारवीं पोस्ट है. विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी "लस्ट फ़ॉर लाइफ़" का यह टुकड़ा इस ब्लॉग के लिए लगातार एक पथप्रदर्शक का कार्य करता रहा है -
"दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है."
इन शब्दों को याद करता हुआ मैं इस पोस्ट में अतुलनीय चित्रकार और मनुष्य विन्सेन्ट वान गॉग की कुछ महान पेन्टिंग्स साझा कर रहा हूं.
और विन्सेन्ट की याद में डॉन मैक्लीन का गाया गीत "स्टारी स्टारी नाइट" -
और अन्त में प्रिय कवयित्री अनीता वर्मा की एक कविता -
वान गॉग के अन्तिम आत्मचित्र से बातचीत
अनीता वर्मा
एक पुराने परिचित चेहरे पर
न टूटने की पुरानी चाह थी
आंखें बेधक तनी हुई नाक
छिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कान
दूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी को
व्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इन्तज़ार करता था
मैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआ
उसे थोड़ा सा क्या नहीं किया जा सकता था काला
आंखें कुछ कोमल कुछ तरल
तनी हुई एक हरी नस ज़रा सा हिली जैसे कहती हो
जीवन के जलते अनुभवों के बारे में क्या जानती हो तुम
हम वहां चल कर नहीं जा सकते
वहां आंखों को चौंधियाता हुआ यथार्थ है और अन्धेरी हवा है
जन्म लेते हैं सच आत्मा अपने कपड़े उतारती है
और हम गिरते हैं वहीं बेदम
ये आंखें कितनी अलग हैं
इनकी चमक भीतर तक उतरती हुई कहती है
प्यार मांगना मूर्खता है
वह सिर्फ किया जा सकता है
भूख और दुख सिर्फ सहने के लिए हैं
मुझे याद आईं विन्सेन्ट वान गॉग की तस्वीरें
विन्सेन्ट नीले या लाल रंग में विन्सेन्ट बुखार में
विन्सेन्ट बिना सिगार या सिगार के साथ
विन्सेन्ट दुखों के बीच या हरी लपटों वाली आंखों के साथ
या उसका समुद्र का चेहरा
मैंने देखा उसके सोने का कमरा
वहां दो दरवाज़े थे
एक से आता था जीवन
दूसरे से गुज़रता निकल जाता था
वे दोनों कुर्सियां अन्तत: खाली रहीं
एक काली मुस्कान उसकी तितलियों गेहूं के खेतों
तारों भरे आकाश फूलों और चिमनियों पर मंडराती थी
और एक भ्रम जैसी बेचैनी
जो पूरी हो जाती थी और बनी रहती थी
जिसमें कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता था
एक शान्त पागलपन तारों की तरह चमकता रहा कुछ देर
विन्सेन्ट बोला मेरा रास्ता आसान नहीं था
मैं चाहता था उसे जो गहराई और कठिनाई है
जो सचमुच प्यार है अपनी पवित्रता में
इसलिए मैंने खुद को अकेला किया
मुझे यातना देते रहे मेरे अपने रंग
इन लकीरों में अन्याय छिपे हैं
यह सब एक कठिन शान्ति तक पहुंचना था
पनचक्कियां मेरी कमजोरी रहीं
ज़रूरी है कि हवा उन्हें चलाती रहे
मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता
आलू खाने वालों और शराव पीने वालों के लिए भी नहीं
मैंने उन्हें जीवन की तरह चाहा है
अलविदा मैंने हाथ मिलाया उससे
कहो कुछ कुछ हमारे लिए करो
कटे होंठों में भी मुस्कराते विन्सेन्ट बोला
समय तब भी तारों की तरह बिखरा हुआ था
इस नरक में भी नृत्य करती रही मेरी आत्मा
फ़सल काटने वाली मशीन की तरह
मैं काटता रहा दुख की फ़सल
आत्मा भी एक रंग है
एक प्रकाश भूरा नीला
और दुख उसे फैलाता जाता है।
"दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है."
इन शब्दों को याद करता हुआ मैं इस पोस्ट में अतुलनीय चित्रकार और मनुष्य विन्सेन्ट वान गॉग की कुछ महान पेन्टिंग्स साझा कर रहा हूं.
और विन्सेन्ट की याद में डॉन मैक्लीन का गाया गीत "स्टारी स्टारी नाइट" -
और अन्त में प्रिय कवयित्री अनीता वर्मा की एक कविता -
वान गॉग के अन्तिम आत्मचित्र से बातचीत
अनीता वर्मा
एक पुराने परिचित चेहरे पर
न टूटने की पुरानी चाह थी
आंखें बेधक तनी हुई नाक
छिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कान
दूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी को
व्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इन्तज़ार करता था
मैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआ
उसे थोड़ा सा क्या नहीं किया जा सकता था काला
आंखें कुछ कोमल कुछ तरल
तनी हुई एक हरी नस ज़रा सा हिली जैसे कहती हो
जीवन के जलते अनुभवों के बारे में क्या जानती हो तुम
हम वहां चल कर नहीं जा सकते
वहां आंखों को चौंधियाता हुआ यथार्थ है और अन्धेरी हवा है
जन्म लेते हैं सच आत्मा अपने कपड़े उतारती है
और हम गिरते हैं वहीं बेदम
ये आंखें कितनी अलग हैं
इनकी चमक भीतर तक उतरती हुई कहती है
प्यार मांगना मूर्खता है
वह सिर्फ किया जा सकता है
भूख और दुख सिर्फ सहने के लिए हैं
मुझे याद आईं विन्सेन्ट वान गॉग की तस्वीरें
विन्सेन्ट नीले या लाल रंग में विन्सेन्ट बुखार में
विन्सेन्ट बिना सिगार या सिगार के साथ
विन्सेन्ट दुखों के बीच या हरी लपटों वाली आंखों के साथ
या उसका समुद्र का चेहरा
मैंने देखा उसके सोने का कमरा
वहां दो दरवाज़े थे
एक से आता था जीवन
दूसरे से गुज़रता निकल जाता था
वे दोनों कुर्सियां अन्तत: खाली रहीं
एक काली मुस्कान उसकी तितलियों गेहूं के खेतों
तारों भरे आकाश फूलों और चिमनियों पर मंडराती थी
और एक भ्रम जैसी बेचैनी
जो पूरी हो जाती थी और बनी रहती थी
जिसमें कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता था
एक शान्त पागलपन तारों की तरह चमकता रहा कुछ देर
विन्सेन्ट बोला मेरा रास्ता आसान नहीं था
मैं चाहता था उसे जो गहराई और कठिनाई है
जो सचमुच प्यार है अपनी पवित्रता में
इसलिए मैंने खुद को अकेला किया
मुझे यातना देते रहे मेरे अपने रंग
इन लकीरों में अन्याय छिपे हैं
यह सब एक कठिन शान्ति तक पहुंचना था
पनचक्कियां मेरी कमजोरी रहीं
ज़रूरी है कि हवा उन्हें चलाती रहे
मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता
आलू खाने वालों और शराव पीने वालों के लिए भी नहीं
मैंने उन्हें जीवन की तरह चाहा है
अलविदा मैंने हाथ मिलाया उससे
कहो कुछ कुछ हमारे लिए करो
कटे होंठों में भी मुस्कराते विन्सेन्ट बोला
समय तब भी तारों की तरह बिखरा हुआ था
इस नरक में भी नृत्य करती रही मेरी आत्मा
फ़सल काटने वाली मशीन की तरह
मैं काटता रहा दुख की फ़सल
आत्मा भी एक रंग है
एक प्रकाश भूरा नीला
और दुख उसे फैलाता जाता है।
12 comments:
2000 वी पोस्ट की बधाई
यही तो समझना है कि आने का कारण क्या था और जाने के समय क्या चीज खलेगी?
* कबाड़ख़ाने की दो हजारवीं पोस्ट के रूप में वान गॉग के चित्र, डॉन मैक्लीन का गाया गीत 'स्टारी स्टारी' नाइट और अनीता वर्मा की कविता 'वान गॉग के अन्तिम आत्मचित्र से बातचीत' से निर्मित एक त्रयी.... बहुत बढ़िया संयोजन - प्रस्तुतीकरण!
** बधाई हो इस महत्वपूर्ण ठिकाने के मुखिया अशोक पांडे और सभी साथियों को , 'श्रेष्ठ कबाड़ीज'को!
अनगिनत बार कबाड़खाने पर आतेजाते दाई और वों गोग के लिखे पर नज़र रुक ही जाती है....हर बार एक नयी शक्ती देता है,कबाड़खाने पर लगा प्रकाशपुंज है वो/
कविता में जान है /
वाह, कबाड़ी-श्रेष्ठ और सभी कबाड़ियों को ढेर सारी बधाई !!
kabadi ki behtarin 2000th post...jiyo mere lalla
२००० वीं पोस्ट!wow!
इस अवसर पर इससे बेहतर क्या पोस्ट हो सकती है!
Waah!
भाई साहब कबाडखाना लाखो लोगों की पसंद है, हम सब आपको २० हजारवी पोस्ट की ख़ुशी में बधाई अर्ज करते हैं, विन्सेन्ट वान गॉग की चित्र श्रंखला और आपके उनके हिंदी अनुवाद दर्शन के साथ ही आपके इस अथक प्रयास को अविरल गतिमान रहने की हार्दिक बधाई.
रोहित उमराव, हिंदुस्तान, बरेली...
सम्माननीय पोस्ट.
कबाड़खाना अमर रहे !
सम्माननीय पोस्ट.
कबाड़खाना अमर रहे !
congratulation and best wishes for the future.
keep it up..
looking for the same in future
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