Saturday, August 6, 2011

पत्थर चाहता है अनन्त तक पत्थर बने रहना, और बाघ बाघ

बोर्हेस की यह रचना साहित्य की किस विधा या धारा से जोड़ कर देखी जानी चाहिये, मैं नहीं जानता, पर इसे पढ़ना मुझे बार-बार एक थर्राहट से भर देता है.


बोर्हेस और मैं

वह है दूसरा बोर्हेस जिस के साथ चीज़ें घटती हैं. मैं भटकता फिरता हूं बूएनोस आयरेस में और आजकल तकरीबन मिकानीकी तरीक़े से ठहरकर प्रवेशद्वार पर मेहराबदार हॉल और लोहे के गेट की जालियों को निहारता हूं - मुझे डाक की मार्फ़त बोर्हेस की ख़बरें मिलती है, मैं उसका नाम पढ़ता हूं प्रोफ़ेसरों की जीवनियों वाली एक सूची में. मुझे पसन्द हैं रेतघड़ियां,नक्शे, अट्ठारहवीं शताब्दी की मुद्रण कला, शब्द व्युत्पत्तिशास्त्र, कॉफ़ी का स्वाद और स्टीवेन्सन का गद्य - दूसरा बोर्हेस भी यही सब पसन्द करता हैं लेकिन एक अर्थहीन तरीक़े से - वह उन्हें किसी अभिनेता के औज़ारों में तब्दील कर देता है. यह अतिकथन होगा कि हमारा सम्बन्ध आक्रामक है; मैं जीवित रहता हूं, बना रहता हूं ताकि बोर्हेस अपना साहित्य बुन सके. और वह साहित्य मुझे न्यायोचित ठहराता है. मुझे यह स्वीकार करने में कोई तकलीफ़ नहीं कि उसके कुछ पन्ने ठीकठाक हैं लेकिन वे मुझे बचा नहीं पाएंगे, सम्भवतः इसलिए कि अच्छे लेखन पर किसी का अधिकार नहीं होता, उस दूसरे का भी नहीं, अधिकार सिर्फ़ भाषा और परम्परा का होता है. बाक़ी यह कि मेरा अदृश्य हो जाना पूर्वनियत है, निश्चित, और मेरा कुछ अंश दूसरे वाले में बच रहेगा. धीरे-धीरे मैं उसके आगे समर्पण कर रहा हूं हालांकि हेरफ़ेर और अतिरंजना की उसकी विकृत प्रवृत्ति को मैं साफ़-साफ़ समझता हूं. स्पिनोज़ा समझ गया था कि सारी चीज़ें वैसे ही रहना चाहती हैं जैसी वे हैं - पत्थर चाहता है अनन्त तक पत्थर बने रहना, और बाघ बाघ. मैं बना रहूंगा बोर्हेस में, स्वयं में नहीं (अगर मैं स्वयं कुछ हूं तो), तो भी मैं अपने को उसकी किताबों में कम बाक़ी चीज़ों में ज़्यादा पहचानता हूं, गिटार की परिश्रमी झंकार से भी कम. कई साल पहले मैंने स्वयं को उस से मुक्त करना चाहा था और उपनगरीय मितकों से मैं जा पहुंचा समय और अनन्त के खेल में, लेकिन अब वे बोर्हेस के खेल हैं और मुझे कुछ नई चीज़ों की बाबत सोचना पड़ेगा. इस तरह एक उड़ान है मेरा जीवन और मेरा सब कुछ बिसर जाएगा सब कुछ हो जाएगा विस्मृति का या उस दूसरे का.

हम दोनों में से किस ने लिखा है इस पन्ने को, मैं नहीं जानता.

1 comment:

S.N SHUKLA said...

bahut sundar prastuti