यह वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी की ताज़ातरीन कविता है और अब तक अप्रकाशित. एक ऐसे पहलू को छूती जिस से आम तौर पर हमारे कविगण अक्सर बच कर निकल जाना बेहतर समझते हैं.
धन्धे का भविष्य
बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी से
आतंकी दोस्त ने कहा - "अपना अन्त बेहद क़रीब समझो
तुम अपने धर्म से भटक गए हो"
बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी ने कहा -
"धन्धा सब सिखा देता है
मैं इन्सानियत फैलाने के लिए औलादें नहीं बचा रहा."
"बच्चे नहीं होंगे तो मानव-बम किसे बनाओगे
मैं धन्धे का भविष्य बचा रहा हूं."
7 comments:
बेहद गहन्।
गज़ब।
achchhi kavita tou nahi kah sakta ise.
लक्ष्य की प्रतिबध्यता
खूबसूरत अंदाज़
ओह .. भविष्य की योजना
जैसे लाहुल का किसान सर्दियों मे काटने के लिए भेड़ पालता है ....क्रूर किंतु सच !
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