Thursday, August 4, 2011

मैं धन्धे का भविष्य बचा रहा हूं

यह वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी की ताज़ातरीन कविता है और अब तक अप्रकाशित. एक ऐसे पहलू को छूती जिस से आम तौर पर हमारे कविगण अक्सर बच कर निकल जाना बेहतर समझते हैं.


धन्धे का भविष्य

बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी से
आतंकी दोस्त ने कहा - "अपना अन्त बेहद क़रीब समझो
तुम अपने धर्म से भटक गए हो"

बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी ने कहा -
"धन्धा सब सिखा देता है
मैं इन्सानियत फैलाने के लिए औलादें नहीं बचा रहा."

"बच्चे नहीं होंगे तो मानव-बम किसे बनाओगे
मैं धन्धे का भविष्य बचा रहा हूं."

7 comments:

vandana gupta said...

बेहद गहन्।

प्रवीण पाण्डेय said...

गज़ब।

विजय गौड़ said...

achchhi kavita tou nahi kah sakta ise.

श्री सोलर said...

लक्ष्य की प्रतिबध्यता

S.N SHUKLA said...

खूबसूरत अंदाज़

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ओह .. भविष्य की योजना

अजेय said...

जैसे लाहुल का किसान सर्दियों मे काटने के लिए भेड़ पालता है ....क्रूर किंतु सच !