Saturday, August 6, 2011

उस्ताद रहीम फ़हीमुद्दीन डागर को श्रद्धांजलि


ख़लीफ़ा उस्ताद अलाहबन्दे रहीमुद्दीन ख़ान डागर के सुपुत्र पद्मभूषण उस्ताद रहीम फ़हीमुद्दीन डागर साहब का बीती 27 जुलाई को इन्तकाल हो गया. ध्रुपद गायन में शीर्ष स्थान रखने वाले इस ख़ानदान के इस वरिष्ठ पुरोधा के जाने से जो जगह ख़ाली हुई है उसे भरा जा सकना नामुमकिन है.

२ फ़रवरी १९२७ को राजस्थान के अलवर में जन्मे डागर साहब को पांच साल की आयु में उनके चाचा उस्ताद नसीरुद्दीन ख़ान डागर ने संगीत के शुरुआती पाठ सिखाए, उसके बाद चला पैंतीस सालों की कठिन साधना का दौर. इन पैंतीस सालों के बारे में एक दफ़ा उस्ताद रहीम फ़हीमुद्दीन डागर ने स्वयं कहा था "इस वक़्फ़े में मुझे सारे के सारे बावन अलंकारों, नाद योग, रुद्र वीणा और संस्कृत पर महारत हासिल करने के साथ साथ ध्रुपद-धमार को पूरी तरह साध लेना था.

ध्रुपद के बारे में वे कहा करते थे - "मेरे पूर्वज शत शास्त्री बाबा बेहराम ख़ान डागर के शाब्दों में ध्रुपद, जैसा कि हमारी डागर वाणी में प्रस्तुत किया जाता है, रागात्मक-स्वरात्मक-शब्दात्मक-वर्णात्मक-लयात्मक और रसात्मक होना चाहिए."

यकीन जानिए ध्रुपद गायकी ऐसी ही जटिल और श्रमसाध्य होती है. उस्ताद को श्रद्धांजलि के साथ उनका गाया राग शुद्ध सारंग -

1 comment:

S.N SHUKLA said...

achchhee post, dagar saahab ko shriddhaanjali bhee .