संध्या गुप्ता नहीं रहीं। उनका निधन पिछले महीने ( नवंबर) की आठ तारीख को हो गया था। हिन्दी कविता के गंभीर पाठकों और प्रेमियों के लिए उनकी उपस्थिति देश भर की प्रतिष्ठित पत्र - पत्रिकाओं के जरिए सुलभ थी । २०१० में उन्हें राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली से २००४ में छपे कविता संग्रह 'बना लिया मैंने भी घोंसला' के लिए मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था और 'राष्ट्रीय एकता में कवियों का योगदान' शीर्षक पुस्तक के लिए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र राष्ट्रीय एकता पुरस्कार प्राप्त हुआ था। वे झारखंड के दुमका स्थित सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थीं तथा हिन्दी एकेडेमिक दुनिया और साहित्य की दुनिया में निरन्तर सक्रिय थीं। एक ब्लॉगर के रूप में भी संध्या जी की विशिष्ट पहचान थी। १८ सितंबर २००८ को उन्होंने अपने ब्लॉग sandhya gupta की शुरुआत की थी और पहली पोस्ट के रूप में 'कोई नहीं था' शीर्षक एक छोटी - सी कविता प्रस्तुत की थी :
कोई नहीं था कभी यहां
इस सृष्टि में
सिर्फ
मैं...
तुम....और
कविता थी!
संध्या गुप्ता के ब्लॉग की आखिरी प्रविष्टि ४ अगस्त २०११ की है। इस दिन उन्होंने लिखा था : 'मित्रों, एकाएक मेरा विलगाव आपलोगों को नागवार लग रहा है, किन्तु शायद आपको यह पता नहीं है की मैं पिछले कई महीनो से जीवन के लिए मृत्यु से जूझ रही हूँ । अचानक जीभ में गंभीर संक्रमण हो जाने के कारन यह स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जीवन का चिराग जलता रहा तो फिर खिलने - मिलने का क्रम जारी रहेगा। बहरहाल, सबकी खुशियों के लिए प्रार्थना।' लेकिन उनके जीवन का चिराग ८ नवंबर को गाँधीनगर में बुझ गया। झारखंड के अखबारों में उनके निधन व शोकसभा की खबरें आईं लेकिन व्यापक हिन्दी बिरादरी तक संध्या गुप्ता का जाना अनदेखा ही रह गया। भला हो हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया जिसके माध्यम से यह खबर 'खबर' बनी है और संध्या गुप्ता की कविताओं के पाठक उन्हें याद कर रहे हैं। यह खबर सर्वप्रथम 'इन्द्रधनुष' की आर० अनुराधा ने दी है : 'मुझे पता था कि पिछले कुछ महीनों से वे बीमार हैं, कैंसर से जूझ रही हैं। इस सिलसिले में मैंने उन्हें ब्लॉग के जरिए संदेश भेजा, पर जबाव अभी तक नहीं आया। जिज्ञासावश उनके नाम की तलाश की गूगल पर, तो जागरण याहू पर यह लिंक मिला जिसमें खबर थी कि- "नहीं रही डॉ.संध्या गुप्ता, शोक में डूबा विश्वविद्यालय" । यह 9 नवंबर की खबर थी। 'नुक्कड़' , 'गुल्लक', 'चोखेरबाली' , 'बर्ग वार्ता' और अन्य जगहों पर बहुत आदर के साथ याद किया जा रहा है। संध्या गुप्ता की कवितायें हम सबके साथ है। उन्हें श्रद्धांजलि ! नमन! आइए उनके ब्लॉग से श्रद्धांजलि स्वरूप साझा करते हैं ये पाँच कवितायें :
संध्या गुप्ता : पाँच कवितायें
चुप नहीं रह सकता आदमी
चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीखे या फुसफुसाये
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!
बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीखता तो कोई नहीं के बराबर ...
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
उस स्त्री के बारे में
करवट बदल कर सो गई
उस स्त्री के बारे में तुम्हे कुछ नहीं कहना!
जिसके बारे में तुमने कहा था
उसकी त्वचा का रंग सूर्य की पहली किरण से
मिलता है
उसके खू़न में
पूर्वजों के बनाये सबसे पुराने कुएँ का जल है
और जिसके भीतर
इस धरती के सबसे बड़े जंगल की
निर्जनता है
जिसकी आँखों में तुम्हें एक पुरानी इमारत का
अकेलापन दिखा था
और....जिसे तुम बाँटना चाहते थे
जो... एक लम्बे गलियारे वाले
सूने घर के दरवाजे पर खड़ी
तुम्हारी राह तकती थी!
एक गैर दुनियादार शख्स की मृत्यु पर एक संक्षिप्त विवरण़
एक विडम्बना ही है और इसे गैर दुनियादारी ही कहा जाना चाहिये
जब शहर में हत्याओं का दौर था.....उसके चेहरे पर शिकन नहीं थी
रातें हिंसक हो गयी थीं और वह चैन से सोता देखा गया
यह वह समय था जब किसी भी दुकान का शटर
उठाया जा रहा था आधी रात को और हाथ
असहाय मालूम पड़ते थे
सबसे महत्वपूर्ण पक्ष उसके जीवन का यह है कि वह
बोलता हुआ कम देखा गया था
“ दुनिया में किसी की उपस्थिति का कोई ख़ास
महत्व नहीं ”-
एक दिन चैराहे पर
कुछ भिन्नाई हुई मनोदशा में बकता पाया गया था
उसकी दिनचर्या अपनी रहस्यमयता की वजह से अबूझ
किस्म की थी लेकिन वह पिछले दिनों अपनी
खराब हो गई बिजली और कई रोज़ से खराब पड़े
सामने के हैण्डपम्प के लिये चिन्तित देखा गया था
उसे पुलिस की गाड़ी में बजने वाले सायरनों का ख़ौफ़
नहीं था...मदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने में भी उसकी
दिलचस्पी कभी देखी नहीं गई
राजनीति पर चर्चा वह कामचोरों का शगल मानता था
यहां तक कि इन्दिरा गांधी के बेटे की हुई मृत्यु को वह
विमान दुघर्टना की वजह में बदल कर नही देखता था
अपनी मौत मरेंगे सब!!!
उस अकेले और गैर दुनियादार शख़्स की राय थी
जब एक दिन तेज़ बारिश हो रही थी
बच्चे, जवान शहर से कुछ बाहर एक उलट गई बस को
देखने के लिये छतरी लिये भाग रहे थे
वह अकेला और
जिसे गैर दुनियादार कहा गया था,
शख़्स इसी बीच रात के तीसरे पहर को मर गया
तीन दिन पहले उसकी बिजली ठीक हो गई थी
और जैसा कि निश्चित ही था कि घर के सामने वाले
हैण्डपम्प को दो या तीन दिनों के भीतर
विभागवाले ठीक कर जाते
उस अकेले और गैर दुनियादार शख़्स का भी
मन्तव्य था कि मृत्यु किसी का इन्तज़ार नहीं करती
पर जो निश्चित जैसा था और इस पर मुहल्लेवालों की
बात भी सच निकली
उसका शव बहुत कठिन तरीके से
और मोड़ कर उसके दरवाजे़ के बाद की
सँकरी गली से निकला!
बना लिया मैंने भी घोंसला
घंटों एक ही जगह पर बैठी
मैं एक पेड़ देखा करती
बड़ी पत्तियाँ...छोटी पत्तियाँ...
फल-फूल और घोंसले ....
मंद-मंद मुस्काता पेड़
खिलखिला कर हँसतीं पत्तियाँ...
सब मुझसे बातें करते!!
कभी नहीं खोती भीड़ में मैं
खो जाती थी अक्सर इन पेडों के बीच!
साँझ को वृक्षों के फेरे लगाती
चिड़ियों की झुण्डों में अक्सर
शामिल होती मैं भी!
...और एक रोज़ जब
मन अटक नहीं पाया कहीं किसी शहर में
तो बना लिया मैंने भी एक घोंसला
उसी पेड़ पर!
वह संसार नहीं मिलेगा
और एक रोज़ कोई भी सामान
अपनी जगह पर नहीं मिलेगा
एक रोज़ जब लौटोगे घर
और... वह संसार नही मिलेगा
वह मिटटी का चूल्हा
और लीपा हुआ आंगन नहीं होगा
लौटोगे... और
गौशाले में एक दुकान खुलने को तैयार मिलेगी
घर की सबसे बूढ़ी स्त्री के लिए
पिछवाड़े का सीलन और अंधेरे में डूबा कोई कमरा होगा
जिस किस्सागो मज़दूर ने अपनी गृहस्थी छोड़ कर
तुम्हारे यहाँ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दी
उसे देर रात तक बकबक बंद करने
और जल्दी सो जाने की हिदायत दी जाएगी
देखना-
विचार और संवेदना पर नये कपड़े होंगे!
लौट कर आओगे
और अपनों के बीच अपने कपड़ो
और जूतो से पहचाने जाओगे...!
वहाँ वह संसार नहीं मिलेगा !!
---
( 'कविता कोश' पर संध्या गुप्ता की कविताओं के पन्ने पर जाने लिए यहाँ क्लिक करें।)
16 comments:
शुक्रिया सिद्धेश्वर जी। संध्याजी की ये कविताएं पढ़कर समझ में आता है कि हमारे समय ने वास्तव में एक ऐसी कवियत्री को खो दिया है जिसने अपनी कविता के मुहावरे का स्वयं गढ़ा था। उनकी इन कविताओं में समय से परे की ताजगी और समसामयिकता नजर आती है।
राजेश जी से पूरी तरह सहमत्………अब सिवाय भावभीनी श्रद्धांजलि के कुछ दे भी नही सकते।
बहुत दुखद खबर है। जहां तक मुझे याद है, वे चित्रकारी भी करती थीं और उनकी कुछ पेंटिंग्स मैंने कहीं छपी देखी हैं। उनकी कविताओं में हमेशा ही कुछ संवेदनशील और गंभीर, मितभाषी पंक्तियों ने मुझे आकृष्ट किया। मेरी श्रद्धांजलि। असामयिक निधन से अधिक तकलीफदेह कुछ नहीं।
शुक्रिया! मेरी भी श्रदांजलि!
मेरी श्रद्धांजलि ।
संध्याजी को विनम्र श्रद्धांजलि।
कवितायें पढते हुए आँख नम ही रही.. कविताओं ने और उदास कर दिया.. यह निश्चित रूप से साहित्य की क्षति है.. उन्हें श्रद्धांजली
चुप नहीं रह सकता आदमी' और 'उस स्त्री के बारे में'बेहद सशक्त रचनाएँ हैं. अफ़सोस कि इन्हें पढ़ने का मौक़ा संध्या के निधन के बाद मिल रहा है. उन्हें श्रद्धांजलि.
शृद्धांजलि....
श्रधांजलि.
सन्ध्या जी का जाना बहुत तकलीफ दे रहा है । 2002 में "आजकल " में मेरी कुछ कवितायें छपीं थी , उसपर प्रतिक्रिया स्वरूप उनका एक अंतर्देशीय पत्र आया था । पता नहीं कहाँ रखा गया वह पत्र ।
बहुत दुखद ... श्रधांजलि
संध्याजी के चले जाने के बारे में पहले चोखेरबाली में फ़िर दूसरे ब्लाग्स पर उनके बारे में पढ़ा।
संध्याजी की स्मृति को नमन! विनम्र श्रद्धांजलि।
ओह, बेहद दु:खद।
इतनी कम आयु में ऐसे अवसान परिवार के लिए भारी क्षति है।
विनम्र श्रद्धांजलि !
संध्या गुप्ता का नाम मैंने भी उनके जाने के साथ ही इन ब्लॉग पर श्रद्धांजलियों से जाना .उनकी कवितायें पढीं.घोंसला बनाकर उसे छोड़ कर जाना बेहद दुखद होता है उनके करीबी और मित्रों को उनकी स्मृतियों के साथ जीना है.मेरा दुःख भी उनके साथ साझा है....श्रृद्धांजलि .
क्या कहूं? असमय चले जाने का दुख बहुत गहरा होता है. श्रद्धान्जलि.
Post a Comment