Friday, January 27, 2012

नए तिब्बत की कविता - ५

अड़तीस साल के तेनजिन त्सुंदे कहते हैं - "मानवीय कथाओं में हमेशा एक सार्वभौमिक अनुगूंज होती है. मैं मानता हूँ कि जहां मेरा दिल में अपने परिवार के साथ अपने घर में रह सकने के एक सपने की टीस होगी, यह नैसर्गिक होगा कि हर कोई उस दर्द को पहचान लेगा, चाहे मेरा पाठक एक चीनी ही क्यों न हो."

तेनजिन की एक और कविता -



हताश समय

मार डालो मेरे दलाई लामा को
ताकि मैं बंद कर दूं यकीन करना.

दफ़ना दो मेरा सिर
फोड़ दो उसे
मेरे कपड़े उतार दो
जंजीरों में बाँध दो.
बस मुझे आजाद न करना.

इस कैदखाने के भीतर
यह शरीर तुम्हारा है.
लेकिन इस शरीर के भीतर
मेरा यकीन बस मेरा है.

तुम चाहते हो न?
मुझे मार डालना यहीं - ख़ामोशी के साथ.
ध्यान रखना एक भी सांस न बचे.
बस मुझे आजाद न करना.

अगर तुम चाहो
तो ऐसा फिर से करना.
बिलकुल शुरू से -
मुझे अनुशासित करो
नए सिरे से शिक्षित करो
अपने सिद्धांत सिखलाओ
मुझे दिखलाओ अपनी कम्युनिस्ट तिकड़में
बस मुझे आजाद न करना.

मार डालो मेरे दलाई लामा को
और मैं
बंद कर दूंगा यकीन करना.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सीधा सपाट संवाद..