इस महीने की पहली तारीख को पोलैंड की महान नोबेल-विजेता कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का का निधन हो गया था. उनकी स्मृति में मैंने आप को इस ठिकाने पर उनकी एकाधिक कवितायेँ पढवाई थीं. कोई चार साल पहले मैंने उनकी तकरीबन दो सौ कविताओं का अनुवाद समाप्त किया था. यह अलग बात है कि उन अनुवादों ने अभी पुस्तक के रूप में छपना बाकी है.
शिम्बोर्स्का की मृत्यु के बाद मैं बार-बार उस पांडुलिपि के पास गया हूँ और मेरे भीतर लगातार इस बात का अहसास गहराता गया है कि हमें अभी तक नहीं पता शिम्बोर्स्का के जाने के साथ ही हमने क्या खो दिया है – एक युग, एक चेतना और एक अद्वितीय दृष्टि. और सबसे ऊपर एक बेहद ईमानदार और प्रतिबद्ध रचनाकार (जो आज के समय में एक दुर्लभ प्रजाति बन चुकी है).
आज से मैं इसी महान कवयित्री की कुछेक और कविताओं से आपका परिचय कराऊंगा.
एक अनलिखी कविता का मूल्यांकन
कविता के शुरुआती शब्दों में
लेखिका जोर देकर कहती है कि जहाँ एक तरफ धरती बहुत छोटी है
बेहद विशाल है आसमान और उसके भीतर,
मैं उद्धृत करती हूँ “हमारी अपनी भलाई के लिए ज़रूरत से ज्यादा सितारे हैं.”
जब वह आसमान का चित्र खींचती है, आपको उसके भीतर की असहायता नज़र आ जाती है,
एक भयावह विस्तार में खो गई है लेखिका
वह इस गृह की जीवन-हीनता के कारण अचंभित है,
और उसके दिमाग में (जिसे हम अस्पष्ट ही कह सकते हैं)
जल्द ही एक सवाल उठता है –
क्या अंततः हम अकेले होते हैं
सूरज के नीचे, उन सारे सूर्यों के नीचे जो कभी चमके थे.
प्रायिकता के तमाम सिद्धांतों के बावजूद!
और वर्तमान के हर जगह स्वीकार कर लिए गए पूर्वानुमानों के बावजूद!
उस अवश्यम्भावी प्रमाण के बावजूद जो कभी भी आ सकता है
आदमी के हाथ! यह आपके वास्ते कविता है.
इस दौरान, कवयित्री देवी वापस लौट आती है ज़मीन पर.
उस गृह पर जिसके बारे में उसका दावा है कि वह “बिना प्रत्यक्षदर्शियों के
चक्कर काटती जाती है” जो इकलौती “विज्ञान कथा है जिसे हमारा
ब्रह्माण्ड अफोर्ड कर सकता है.”
इस तरह पास्कल (१६२३-१६६२) का दुःख,
लेखिका का मानना है, अद्वितीय था
किसी भी एंड्रोमेडा या कैसियोपीया के भीतर.
हमारा इकलौता अस्तित्व हमारे कर्तव्यबोध को
भ्रष्ट करता है और
उस अवश्यम्भावी प्रश्न को ला खड़ा करता है
हमें किस तरह जीवित रहना चाहिए इत्यादि इत्यादि?
चूंकि “हम उस खोखल की अनदेखी नहीं कर सकते”
“हे भगवान, आदमी पुकारता है खुद को
मुझ पर दया करो, मैं भीख मांगता हूँ, मुझे राह सुझाओ ...”
लेखिका को बेहद अफ़सोस है कि जीवन इतने मज़े में बर्बाद किया जाता है
मानो हमें अनंत आपूर्ति मिल रही हो.
इसी तरह वह युद्धों को लेकर भी चिंतित है, जो,
उसके विकृत विचारों के हिसाब से,
दोनों पक्षों द्वारा हारे जाते हैं - हमेशा.
और ऐसा कुछ लोगों द्वारा दूसरों पर अपने अधिकार थोपने की वजह से होता है.
उसके नैतिक उद्देश्य पूरी कविता भर दिपदिपाते रहते हैं.
किसी अधिक निश्छल लेखनी के नीचे वे शायद ज्यादा चमकते.
इस वाली के नीचे नहीं, हाय! मूलतः उसका अभिप्रायहीन सिद्धांत
(कि हम सब आखिरकार अकेले होते हैं
सूर्य के नीचे, उन सारे सूर्यों के नीचे जो कभी चमके थे)
और उसकी आत्माहीन शैली (अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों
और साधारण भाषा का मेल) इस सवाल को सामने ले कर आते हैं –
इस कविता पर कौन विश्वास करेगा?
उत्तर बस एक ही हो सकता है – कोई नहीं.
इति सिद्धम.
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(पास्कल - फ्रांसीसी गणितज्ञ व दार्शनिक जिन्होंने प्रायिकता के सिद्धांत की नींव रखी.
एंड्रोमेडा – एक तारामंडल जो उत्तरी गोलार्ध के ऊपर कैसीयोपिया और पेगासस तारामंडलों के मध्य अवस्थित है.
कैसीयोपिया – सन्दर्भ ऊपर दिया गया है)
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