Saturday, February 18, 2012

हकीक़त के संसार को विस्मृति से भयभीत नहीं होना होता


हकीक़त का संसार

विस्वावा शिम्बोर्स्का

इस तरह उड़ान नहीं भरता हकीक़त का संसार
जैसे सपने भरते हैं
कोई दबी हुई आवाज़ या घंटी
उसे रस्ते से हटा नहीं सकते.
कोई भी चीख या टक्कर
उसे छोटा नहीं बना सकते.

सपनों में छवियाँ
धुंधली और अस्पष्ट होती हैं
और आमतौर पर कई भिन्न तरीकों से
उनकी व्याख्या की जा सकती है.
हकीक़त का मतलब हकीक़त होता है
जिसकी असलियत जानना अधिक टेढी खीर होता है.

सपनों की चाभियां होती हैं
हकीक़त का संसार अपने आप खुलता है
और उसे बंद नहीं किया जा सकता,
उस में से बाहर आते हैं
परीक्षाफल और सितारे
उस में से बौछारें होती हैं
तितलियों और बगैर सर की टोपियों
और बादलों की किरचों की
कुल मिला कर वे एक पहेली तैयार करते हैं
जिसे हल नहीं किया जा सकता.

हमारी अनुपस्थिति में सपनों का अस्तित्व नहीं हो सकता था.
वह सपना जिस पर टिका है हकीक़त का संसार
अब भी अज्ञात है,
और उसकी अनिद्रा के उत्पाद
हर जागने वाले के लिए उपलब्ध हैं.

सनकी नहीं होते सपने -
असल में हकीक़त का संसार पागल है
चाहे अपने अड़ियलपन में ही क्यों न हो
जिस से वह चिपका रहता है
घटनाक्रम की धाराओं के बीच.

सपनों में अब भी जीवित रहते हैं
हमारे ताज़ा मृतक
और पूरी तरह स्वस्थ.
वापस पा चुकने के बाद अपना यौवन.
हकीक़त का संसार हमारे सामने रख देता है
मृत देह को.
पलक तक नहीं झपकाता
हकीक़त का संसार.

सपने होते हैं पंखों की तरह भारहीन
और स्मृति
बहुत आसानी से उन से पल्ला झाड सकती है.
हकीक़त के संसार को
विस्मृति से भयभीत नहीं होना होता.
बेहद जिद्दी होता है वह.
बैठा हुआ हमारे कन्धों पर,
उसका भार हमारे दिलों पर
और हमारे पैरों पर लुढकता रहता है.

उस से कोई बचाव नहीं.
जब हम भाग रहे होते हैं
वह लद जाता है हम पर
और बच निकलने के हमारे रास्ते में ठहरने की कोइ जगह नहीं -
हकीक़त नहीं कर रही हमारा इंतज़ार वहाँ.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सपनों में सपनों से सपनों की सारी बातें...